बहुत ढूंढा जमाने में नहीं तुम सा मिला कोई ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
बहुत ढूंढा ज़माने में , नहीं तुम सा मिला कोईतुम्हारे बिन नहीं सुनता , हमारी इल्तिजा कोई।
इबादत छोड़ मत देना ,परेशां हाल हो कर तुम
यही रखना भरोसा बस , कहीं होगा ख़ुदा कोई।
हुई वीरान जब महफ़िल , करोगे याद सब उस दिन
वही महफ़िल जमाता था ,कहां उठकर गया कोई।
किया करते सभी से बेवफ़ाई जो हमेशा हैं
शिकायत क्यों उन्हीं को है नहीं उनका हुआ कोई।
कभी कह हम नहीं पाये , कभी वो सुन नहीं पाये
शुरू कुछ बात जब करते , तभी बस आ गया कोई।
छिपा कर इस जहां से तुम इन्हें पलकों पे रख लेना
तुम्हारे अश्क मोती हैं , नहीं ये जानता कोई।
खताएं भी हुई होंगी , कई हमसे यहां "तनहा"
सभी इंसान दुनिया में , नहीं है देवता कोई।
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