अप्रैल 20, 2013

POST : 331 सभी को हुस्न से होती मुहब्बत है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सभी को हुस्न से होती मुहब्बत है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सभी को , हुस्न से होती मुहब्बत है
हसीं कितनी हसीनों की शिकायत है ।

भला दुनिया उन्हें कब याद रखती है
कहानी बन चुकी जिनकी हक़ीकत है ।

है गुज़री इस तरह कुछ ज़िंदगी अपनी
हमें जीना भी लगता इक मुसीबत है ।

उन्हें आया नहीं बस दोस्ती करना
किसी से भी नहीं बेशक अदावत है ।

वो आकर खुद तुम्हारा हाल पूछें जब
सुनाना तुम तुम्हारी क्या हिकायत है ।

हमें लगती है बेमतलब हमेशा से
नहीं सीखी कभी हमने सियासत है ।

वहीं दावत ,जहां मातम यहां "तनहा"
हमारे शहर की अपनी रिवायत है । 
 

 

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