फ़रवरी 08, 2013

POST : 296 अपने आप से साक्षात्कार ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

अपने आप से साक्षात्कार ( कविता )  डॉ लोक सेतिया 

हम क्या हैं
कौन हैं
कैसे हैं 
कभी किसी पल
मिलना खुद को ।

हमको मिली थी
एक विरासत
प्रेम चंद
टैगोर
निराला
कबीर
और अनगिनत
अदीबों
शायरों
कवियों
समाज सुधारकों की ।

हमें भी पहुंचाना था
उनका वही सन्देश
जन जन
तक जीवन भर
मगर हम सब
उलझ कर रह गये 
सिर्फ अपने आप तक हमेशा ।

मानवता
सदभाव
जन कल्याण
समाज की
कुरीतियों का विरोध
सब महान
आदर्शों को छोड़ कर
हम करने लगे
आपस में टकराव ।

इक दूजे को
नीचा दिखाने के लिये 
कितना गिरते गये हम
और भी छोटे हो गये
बड़ा कहलाने की
झूठी चाहत में ।

खो बैठे बड़प्पन भी अपना
अनजाने में कैसे
क्या लिखा
क्यों लिखा
किसलिये लिखा
नहीं सोचते अब हम सब
कितनी पुस्तकें
कितने पुरस्कार
कितना नाम
कैसी शोहरत
भटक गया लेखन हमारा
भुला दिया कैसे हमने 
मकसद तक अपना ।

आईना बनना था 
हमको तो
सारे ही समाज का 
और देख नहीं पाये
हम खुद अपना चेहरा तक
कब तक अपने आप से
चुराते रहेंगे  हम नज़रें
करनी होगी हम सब को
खुद से इक मुलाकात । 
 

 

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