जनवरी 06, 2013

POST : 273 हद से अब तो गुज़र गये हैं लोग ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 हद से अब तो गुज़र गये हैं लोग ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हद से अब तो गुज़र गये हैं लोग
जाने क्यूँ सच से डर गये  हैं लोग ।

हमने ये भी तमाशा देखा है
पी के अमृत भी मर गये  हैं लोग ।

शहर लगता है आज वीराना
कौन जाने किधर गये  हैं लोग ।

फूल गुलशन में अब नहीं खिलते
ज़ुल्म कुछ ऐसा कर गये  हैं लोग ।

ये मरुस्थल की मृगतृष्णा है
पानी पीने जिधर गये हैं लोग । 
 

 

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