दिसंबर 22, 2012

POST : 261 उसको न करना परेशान ज़िंदगी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 उसको न करना परेशान ज़िंदगी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

उसको न करना परेशान ज़िंदगी
टूटे हुए जिसके अरमान ज़िंदगी ।

होने लगा प्यार हमको किसी से जब
करने लगे लोग बदनाम ज़िंदगी ।

ढूंढी ख़ुशी पर मिले दर्द सब वहां
जायें किधर लोग नादान ज़िंदगी ।

रहने को सब साथ रहते रहे मगर
इक दूसरे से हैं अनजान ज़िंदगी ।

होती रही बात ईमान की मगर
आया नज़र पर न ईमान ज़िंदगी ।

सब ज़हर पीने लगे जान बूझ कर
होने लगी देख हैरान ज़िंदगी ।

शिकवा गिला और "तनहा" न कर अभी
बस चार दिन अब है महमान ज़िंदगी ।
 

 

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