दिसंबर 30, 2012

POST : 269 नहीं कभी रौशन नज़ारों की बात करते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

      नहीं कभी रौशन नज़ारों की बात करते हैं ( ग़ज़ल ) 

                          डॉ लोक सेतिया "तनहा"

नहीं कभी रौशन नज़ारों की बात करते हैं
जो टूट जाते उन सितारों की बात करते हैं ।

हैं कर रही बरबादियां हर तरफ रक्स लेकिन
चलो खिज़ाओं से बहारों की बात करते हैं ।

वो लोग सच को झूठ साबित किया करें बेशक
जो रोज़ आ के हमसे नारों की बात करते हैं ।

वो जानते हैं हुस्न वालों की हर हकीकत को
उन्हीं के कुछ टूटे करारों की बात करते हैं ।

गुलों से करते थे कभी गुफ्तगू बहारों की
जो बागबां खुद आज खारों की बात करते हैं ।

हुआ हमारे साथ क्या है ,किसे बतायें अब
सभी तो नज़रों के इशारों की बात करते हैं ।

जिसे नहीं आया अभी तक ज़मीं पे चलना ही
वही ज़माने के सहारों की बात करते हैं ।

जो नाखुदा कश्ती को मझधार में डुबोते हैं
उन्हीं से "तनहा" क्यों किनारों की बात करते हैं ।
 

 

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