दिसंबर 29, 2012

बहाने अश्क जब बिसमिल आये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बहाने अश्क जब बिसमिल आये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बहाने अश्क जब बिसमिल आये 
सभी कहने लगे पागल आये।

हुई इंसाफ की बातें लेकिन
ले के खाली सभी आंचल आये।

सभी के दर्द को अपना समझो
तुम्हारी आंख में भर जल आये।

किसी की मौत का पसरा मातम
वहां सब लोग खुद चल चल आये।

भला होती यहां बारिश कैसे
थे खुद प्यासे जो भी बादल आये।

कहां सरकार के बहते आंसू
निभाने रस्म बस दो पल आये।

संभल के पांव को रखना "तनहा"
कहीं सत्ता की जब दलदल आये।

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