नवंबर 09, 2012

POST : 223 उस पार जाना ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

         उस पार जाना ( कविता ) डॉ लोक सेतिया 

ले चल मुझे उस पार 
मेरे माझी
पूछा नहीं कभी भी मैंने
है कहां मेरे सपनों का जहां ।

तलाश करने अपनी दुनिया
जाना है उस पार मुझे
मैं  नहीं डरता भंवर से
तूफ़ान से ।

दिया नहीं कभी
किसी ने मेरा साथ 
मगर तुम माझी हो मेरे
लगा दो पार नैया मेरी
या डुबो दो भंवर में ।

तोड़ो मत मेरा दिल
ये कह कर
कि उस पार कुछ नहीं है ।

कह दो मेरे माझी
झूठा है ये  बहाना
मुझे अब भी
है उस पार जाना । 
 

   

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