सितंबर 09, 2012

POST : 118 सभी कुछ था मगर पैसा नहीं था ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 सभी कुछ था मगर पैसा नहीं था ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सभी कुछ था मगर पैसा नहीं था
कोई भी अब तो पहला-सा नहीं था ।

गिला इसका नहीं बदला ज़माना
मगर वो शख्स तो ऐसा नहीं था ।

खिला इक फूल तो बगिया में लेकिन
जो हमने चाहा था वैसा नहीं था ।

न पूछो क्या हुआ भगवान जाने
मैं कैसा था कि मैं कैसा नहीं था ।

जो देखा गौर से उस घर को मैंने
लगा मुझको वो घर जैसा नहीं था ।
  
 
 

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