अगस्त 19, 2012

POST : 47 पुष्प ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

 पुष्प ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया    

पल दो पल में मुर्झाऊंगा
शाख से टूट के क्या पाऊंगा ।

आज सजा हूँ गुलदस्ते में
कल गलियों में बिखर जाऊंगा ।

उतरूंगा जो तेरे जूड़े से
बासी फूल ही कहलाऊंगा ।

गूंथा जाऊंगा जब माला में
ज़ख्म हज़ारों ही खाऊंगा ।

मेरे खिलने का मौसम है
लेकिन तोड़ लिया जाऊंगा ।

चुन के मुझे ले जायेगा माली
डाली को याद बहुत आऊंगा । 
 

 


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