अगस्त 19, 2012

POST : 57 खुद-ब-खुद ज़ख्म भी भर जाते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

खुद-ब-खुद ज़ख्म भी भर जाते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

खुद-ब-खुद ज़ख्म भी भर जाते हैं
फायदा ज़हर भी कर जाते हैं ।

सीख जाते हैं भुलाना उनको
बन के जो गैर गुज़र जाते हैं ।

ख्वाब तो ख्वाब हैं उनका क्या है
नींद जो टूटी बिखर जाते हैं ।

एक तिनके का सहारा पा कर
डूबने वाले भी तर जाते हैं ।

इस से पहले कि उन्हें पहचाने
वो जो करना था , वो कर जाते हैं ।

फूल यादों पे चढ़ाओ उनकी
जीते जी लोग जो मर जाते हैं ।  
 
बैठ चुप-चाप कहीं पर "तनहा" 
जब हुई शाम तो घर जाते हैं । 



 

1 टिप्पणी: