खुद-ब-खुद ज़ख्म भी भर जाते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
खुद-ब-खुद ज़ख्म भी भर जाते हैंफायदा ज़हर भी कर जाते हैं ।
सीख जाते हैं भुलाना उनको
बन के जो गैर गुज़र जाते हैं ।
ख्वाब तो ख्वाब हैं उनका क्या है
नींद जो टूटी बिखर जाते हैं ।
एक तिनके का सहारा पा कर
डूबने वाले भी तर जाते हैं ।
इस से पहले कि उन्हें पहचाने
वो जो करना था , वो कर जाते हैं ।
फूल यादों पे चढ़ाओ उनकी
जीते जी लोग जो मर जाते हैं ।
बैठ चुप-चाप कहीं पर "तनहा"
जब हुई शाम तो घर जाते हैं ।
फ़ायदा ज़हर भी कर....kya khne
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