अगस्त 10, 2012

POST : 30 कोई हमराज़ अपना बना लीजिये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कोई हमराज़ अपना बना लीजिये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा" 

कोई हमराज़ अपना बना लीजिये
एक अपनी ही दुनिया बसा लीजिये ।

खुल के हंसिये तो ऐ हज़रते दिल ज़रा
दर्दो-ग़म अपने सारे  मिटा लीजिये ।

ज़िंदगी की अगर लय पे चलना है तो
साज़े दिल पर कोई धुन बजा लीजिये ।

अपना दुश्मन समझते थे कल तक जिन्हें
आज उनको गले से लगा लीजिये ।

जो कहें आप बेख़ौफ़ हो कर कहें
कुछ तो अल्फाज़े-हिम्मत जुटा लीजिये ।

ताज की बात तो बाद की बात है
खुद को शाहे जहां तो बना लीजिये ।

जो भी होना है अंजाम हो जाएगा
आप उल्फत का बीड़ा उठा लीजिये ।
 

  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें