अगस्त 26, 2012

POST : 83 बहती इंसाफ की हर ओर यहां गंगा है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

     बहती इंसाफ की हर ओर यहां गंगा है ( ग़ज़ल ) 

                    डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बहती इंसाफ की हर ओर यहां गंगा है
जो नहाये न कभी इसमें वही चंगा है।

वह अगर लाठियां बरसायें तो कानून है ये
हाथ अगर उसका छुएं आप तो वो दंगा है।

महकमा आप कोई जा के  कभी तो देखें
जो भी है शख्स उस हम्माम में वो नंगा है।

ये स्याही के हैं धब्बे जो लगे उस पर
दामन इंसाफ का या खून से यूँ रंगा है।

आईना उनको दिखाना तो है उनकी तौहीन
और सच बोलें तो हो जाता वहां पंगा है।

उसमें आईन नहीं फिर भी सुरक्षित शायद
उस इमारत पे हमारा है वो जो झंडा है।

उसको सच बोलने की कोई सज़ा हो तजवीज़
"लोक" राजा को वो कहता है निपट नंगा है।  
 

 

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