जुलाई 09, 2012

POST : 07 हमको तो कभी आपने काबिल नहीं समझा (ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

      हमको तो कभी आपने काबिल नहीं समझा (ग़ज़ल ) 

                       डॉ लोक सेतिया  "तनहा"

हमको तो कभी आपने काबिल नहीं समझा
दुःख दर्द भरी लहरों में साहिल नहीं समझा ।

दुनिया ने दिये  ज़ख्म हज़ार आपने लेकिन
घायल नहीं समझा हमें बिसमिल नहीं समझा ।

हम उसके मुकाबिल थे मगर जान के उसने
महफ़िल में हमें अपने मुकाबिल नहीं समझा ।

खेला तो खिलोनों की तरह उसको सभी ने
अफ़सोस किसी ने भी उसे दिल नहीं समझा ।

हमको है शिकायत कि हमें आँख में तुमने
काजल सा बसाने के भी काबिल नहीं समझा ।

घायल किया पायल ने तो झूमर ने किया क़त्ल
वो कौन है जिसने तुझे कातिल नहीं समझा ।

उठवा के रहे "लोक" को तुम दर से जो अपने
पागल उसे समझा किये साईल नहीं समझा ।    
 

 

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