जुलाई 20, 2012

POST : 12 अलविदा ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

    अलविदा ( कविता ) डॉ  लोक सेतिया 

तुम जा रहे हो आज
छुड़ा कर मुझसे हाथ
भुला कर उम्र भर
साथ देने का वादा
जब मिल गया है
तुम्हें किनारा ।

चलो अच्छा हुआ
मिल गया तुम्हें 
कोई तो ऐसा
जो कर सके
पूरे तुम्हारे सपने ।

चाहा तो मैंने भी
यही था सदा
मगर कर न पाया कभी
मुझे और क्या चाहिये
तुम्हारी ख़ुशी से  बढ़कर ।

मैं जूझता रहा
तेज़ हवओं से
लड़ता रहा तूफानों से
नहीं डरा कभी
किसी भी भंवर से ।

समझा था मैंने सदा तुम्हें
अपनी  मंज़िल भी
किनारा भी
मैं खड़ा हूं वहीं उसी  कश्ती पर
थामे पतवार बन के माझी ।

और देख रहा हूं  तुम्हें
आंसू लिये पलकों पर अपनी
कदम - कदम दूर जाते हुए
हाथ हिलाते हुए । 
 

 

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