सच और झूठ की लड़ाई में ( हास्य- कविता ) डॉ लोक सेतिया
शिखर पर खड़ा हुआ है झूठ सच पड़ा हुआ खाई में
इंसाफ़ क़त्ल होता रहता सच और झूठ की लड़ाई में
सियासत की अर्थी भी निकलेगी मगर बरात बन कर
जनता की डोली का दुःख दर्द दब जाएगा शहनाई में
शासकों को क्या खबर क्या क्या होने लगा समाज में
जंग लाज़मी है चुनावी खेल में , हर भाई और भाई में
आत्मा ज़मीर आदर्श और ईमानदारी से फ़र्ज़ निभाना
कोई कबाड़ी खरीदता नहीं ये सब सामान दो पाई में
जिनको इतिहास लिखना आधुनिक समय का यहां
भर लिया इंसानी खून उन्होंने कलम की स्याही में
राजनेता अधिकारी धनवान लोग शोहरत जिनकी है
खोटे साबित हुए सब कसौटी पर हर बार कठिनाई में
सबका भला नहीं सिर्फ खुद अपने लिए जीना मरना
खूब मुनाफ़ा अब बाजार में अच्छों की झूठी बुराई में
Bahut khoob 👍
जवाब देंहटाएं