जनवरी 29, 2021

ज़ालिम दिलफ़रेब दिलरुबा है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

  ज़ालिम दिलफ़रेब दिलरुबा है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

हसीनों की वफ़ा का ऐतबार नहीं समझाया सभी ने बार बार हज़ार बार हम ही निकले समझदार नहीं। ये सियासत की बात है जिस में होता फूलों का कारोबार नहीं कांटों से बचना आसान मेरी सरकार नहीं। राजनीति से बढ़कर झूठ का कोई भी कारोबार नहीं जीत हार से हमको सरोकार नहीं हम नहीं दुश्मन अपने उनके लिए मतलब की दोस्ती है सभी से मतलब निकल गया तो यार भी यार नहीं। अब कैसे समझाएं सर जब नहीं दस्तार नहीं क्यों कर गला कटा कोई भी गुनहगार नहीं। सब करते हैं बातें लेकिन दिल में किसी के प्यार नहीं। वो अपने तलबग़ार नहीं हम उनके ग़मख़्वार नहीं। खाई कसम नहीं करेंगे अब किसी पे ऐतबार हज़ार बार नहीं , नहीं यार नहीं। किसी खूबसूरत हसीना की बात मत समझना ये अपनी खुद की बनाई सरकार की बात है। समंदर की अनबुझी प्यास है कितनी कितनी बार बदली भी है पुरानी छोड़ नई बनाई थी मगर सूखा मचा रही राजनीति की झूठी बरसात है। रास आती नहीं मिली जो सौगात है घात पर मिलती घात है काली स्याह रात अश्कों की बरसात है। सत्ता वालों को मज़ा आता है रुलाने में जिसने उनको सिंहासन पर बिठाया उन्हीं को तड़पाने में ज़ुल्म ढाने में। शर्म नहीं है आती मौज मनाने मुफ्त का खाने में शराब मिलती शराबखाने की पुलिस थाने में। समझ आया उसको आज़माने में जान जाती है ज़िंदगी को करीब लाने में। 
 
ग़ज़ब किया तेरे वादे पर ऐतबार किया पांच साल कयामत का इंतज़ार किया जन्नत की चाहत में क्यों खुद को बेकरार किया। मुहब्बत की गली जानकर बेखुदी में हम कुए क़ातिल खुद ही चले आये अपनी इसी ख़ता पर कितना हैं पछताए। ग़ालिब तेरी दिल्ली ने बर्बाद किया है कैसी लगाई आग जिस्म क्या रूह भी जलती है बस दूर से लगता है शमां सी जलती है सत्ता के गलियारों में आंधी कोई चलती है। सरकार को बेपर्दा देखा जब हमने जो सामने आया कभी सोचा नहीं था हमने। पत्थर के लोग घर पत्थर के दिल भी पत्थर से ज़ालिम खुदा बने बैठे हैं। चेहरे बड़े बदरंग बदसूरत शक्ल नकाब के पीछे छिपा रखे हैं लेकिन सजावट के बेमिसाल आईने लगा रखे है। महलों वालों ने कैक्टस गमले में लगाए हैं फूलों से मत कहना कांटे उनके हमसाये हैं। सत्ता की हवेली ने मंज़र जो दिखाए हैं जान बचाकर घर लौट तो आये हैं कहानी सुनी जिसने लोग थर्राये हैं ऊंचे महल हमको बिलकुल नहीं भाये हैं। ज़ख़्मी होकर चारागर की चौखट से बाहर निकले नमक की बारिश में भी नहाये हैं। उनके हम्माम की बात कहें किसको लहू से नहाते हैं सरकार हमेशा किसी ने खूबसूरत बनने के नुस्खे ये बताये हैं। बात होती है उनके एहसानों की हर तरफ उनकी सितम भी उनके सहते हैं हंस कर चाहने वाले। जो मसीहा बना बैठा है उस से ज़ालिम सितमगर कोई नहीं। खुदा हमने नहीं माना जो कहता है उस जैसा सनम कोई नहीं। बेरहम तुझसा बेरहम कोई नहीं।