नवंबर 30, 2018

सेल लगी सस्ते दाम बिकता सब ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

   सेल लगी सस्ते दाम बिकता सब ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

    कभी मेला लगता था त्यौहार पर छूट की लूट होती थी। इक ज़माना था लोग बस में जल्दी आ जाते थे बस से आते जाते बस अड्डे पर बारी बारी सामान बेचने वाले आते और रस्ते का माल सस्ते में बेच कर भी कमाई कर जाते थे। बेचने बिकने का धंधा इतना बढ़ा कि लोग ईमान धर्म इंसानियत तक बेचने लगे और ऐसा कर करोड़ों अरबों की कमाई करने लगे। राजनीति का धंधा चौखा है जिस में जीत हार जो भी हो तिजौरी कभी खाली नहीं होती और राजनीति के बाज़ार में दुकान खोलना ज़रूरी है उसके बाद आपकी दुकान में क्या सामान है कोई नहीं देखता है। हाथ से कोई सामान देना नहीं है वादा भर करना है जीत जाने दो जो मांगोगे पाओगे। नहीं जितवाया तो पछताओगे हाथ मलते रह जाओगे। बस में खट्टी मीठी गोलियां चूर्ण मंजन सुरमा बेचते थे मेले में खिलौने से लेकर खाने पीने का सामान और नौटंकी से लेकर बंदरिया का नाच और रस्सी पर चलती लड़की और पिंजरे के तोता मैना जो घर लाते ही बोलना भूल जाते थे। ऐसे सभी दुकानदार समय बदलते ही राजनीति के शोरूम्स और मॉल खोल कर नियमित राजनीति का सामान बेचते हैं। देश बेचने से देशभक्ति बेचने तक सब करते हैं जिस से कमाई हो जाये। 
 
           किसी दल ने गांधी को बेचा और गरीबी हटाओ नारा बेचकर सिंहासन पर बैठे रहे। पिछली बार किसी दूसरे ने अच्छे दिन का वादा बेचा और सत्ता हासिल की मगर बाद में समझाया ऐसा कोई सामान होता ही नहीं है और जिस डिब्बे में अच्छे दिन बंद थे उसको खोला तो नोटबंदी और जाने क्या क्या भयानक अनदेखे अनुपयोगी सामान को ऊंचे दाम खरीदने को विवश किया गया। अपनी तिजौरी भरने को सरकार ने सभी की तलाशी ली और देश की जनता को चोरों की तरह खड़ा कर दिया। चौकीदार बनकर मालिक को हड़काने वाला और खुद शाही अंदाज़ से रहने वाला पहली बार दिखाई दिया जो सबको झूठा बताता और खुद अपने तमाम झूठों को सच समझने को मज़बूर करता। नकली रौशनियों से सबकी आंखों को चुंधिया कर जो नहीं हुआ देखने की बात और जो सामने दिखाई देता उसके अनदेखा करने की बात करने लगा। राजा नंगा है कहानी का नया अध्याय लिखा जाता रहा और दो ठग भरी सभा में जो कपड़ा था ही नहीं उसकी तारीफ करवाते और मुंह मांगी कीमत के साथ ईनाम पुरुस्कार लेकर उल्लू बनाते रहे मगर जब उस कपड़े की पोशाक बनाकर पहनी तो पता चला कि सबको नंगा कर दिया है। सीबीआई सीवीसी पीएमओ कितने लोग नंगे नज़र आने लगे हैं। 
 
                   मगर उसको अपनी पोल खुलने की चिंता नहीं है उसे मालूम है लोग लुभावने इश्तिहार के झांसे में आकर फिर उसकी दुकान का धंधा बढ़ा देंगे और विज्ञापन की कला का वही उस्ताद है। जो लोग इश्तिहार बांटने छापने और दिखलाने का कारोबार करते हैं सभी उसने खरीद लिए हैं और सब उसी का गुणगान करते हैं। उन लोगों ने किसी का योग बेचने से हर वो सामान जो उसने बनाया तक नहीं मगर इतना अधिक बिकवाया जितना देश भर में है ही नहीं फिर भी असली का लेबल लगाकर। धर्म बेचते हैं अंधविश्वास को बेचते हैं अपने कार्यकर्म में शो में सीरियल में अश्लीलता और अपराध को बढ़ाने का अपराध करते हुए खुद को सबसे महान समाज की बात और सच का झंडाबरदार बताते हैं। झूठ पर सच का लेबल लगाने की ही नहीं झूठ को सच साबित करने में किसी भी सीमा तक चले जाते हैं। सबको असली चेहरा दिखाने की बात करते हैं मगर खुद अपने चेहरे के दाग़ धब्बे नज़र नहीं आते हैं। वास्तविक समाचार की जगह फेक न्यूज़ चलाते हैं। खुद अपने गुण गाते नहीं शर्माते हैं। वास्तविकता से नज़रें चुराते हैं और बेकार बहस में उलझाते हैं। आगे बढ़ने की चाहत में नीचे गिरते जाते हैं। खुद बिके हुए हैं खरीदार कहलाते हैं।

           अच्छे दिन विकास सबका साथ किसान मज़दूर शिक्षा रोज़गार स्वास्थ्य की बात को छोड़ कर वही दुकानदार अपने नये बनाये आलिशान भवन रुपी मॉल में भगवान बेचने का धंधा करना चाहता है। जनता को बुनियादी सुविधाएं सरकार नहीं भगवान से मांगनी होंगी। भगवान अब एक नहीं है उनकी दुकान पर कई देवी देवता हैं आपको जो पसंद हो उसी को चुन सकते हो। देश पहले भी लोग मानते थे इतना सब गलत है फिर भी कायम है तो ज़रूर भगवान भरोसे चल रहा है। अब उस में भी विकल्प मिलने की बात होने लगी है दलित लोग अपना भगवान कौन है समझ सकते हैं। अदालत को सलाह धमकी की तरह देने लगे हैं कि इंसाफ तथ्य को परख कर नहीं अधिकांश जनता की भावनाओं को देख कर निर्णय करें अन्यथा फैसला लागू नहीं होगा। ये किसी संविधान को नहीं जानते हैं जो धर्मनिरपेक्षता की बात करता है। इनका न्याय भीड़ का फैसला है भीड़ बनकर कानून की धज्जियां उड़ा सकते हैं। धर्म की राजनीति की बात कोई नहीं करता है इनकी राजनीति की साहूलियत से अधर्म को धर्म साबित किया जा सकता है। कानून जिसे गुनाह मानता है इनको ऐसे अपराध करना गर्व की बात लगती है मगर जहां सत्ता की बात आती है वहां भगवान को भी दरकिनार कर देते हैं। इन्हें भगवान चुनावी नैया पार लगाने को याद आते हैं अन्यथा जो जो कहते थे सत्ता मिली तो करना है सब छूट गया है। ऊंची दुकान फीके पकवान भी नहीं इनकी दुकान में कोई सामान ही नहीं है सब जादू का खेल है और जादूगर का शो जब तक है बहुत कुछ दिखलाएगा मगर जब लोग हॉल से बाहर निकलेंगे तो कुछ भी नहीं होगा सब गायब हो चुका होगा। आपकी जेब खाली होगी और घर भी आप खाली हाथ जाओगे। क्या अपनी भूल फिर से दोहराओगे , कितनी बार धोखा खाओगे पछताओगे।

नवंबर 29, 2018

दलीलों के बाज़ार में ( दिया कबीरा रोय ) डॉ लोक सेतिया

    दलीलों के बाज़ार में ( दिया कबीरा रोय ) डॉ लोक सेतिया 

     सोशल मीडिया पर संभव है सभी कुछ। आप लिख दो ग़ालिब चचा कह गये हैं कौन पूछेगा जाकर उनसे आपने ऐसा कैसे कह दिया था वो भी उस ज़माने में। चाणक्य नाम से राजनीति पर कुछ भी बकझक लिख दो कोई रोकने टोकने वाला नहीं है। कुतर्क जब तर्क बना लिए जाते हैं तब बेगुनाह अपराधी साबित हो कर सूली चढ़ जाते हैं ऐसा मुझे नहीं पता पहले किसी ने बोला हो या लिखा हो। मुझे ऐसा समझ आया है कितने लोग फांसी पर लटका दिये गये मगर बाद में साबित हुआ गुनहगार सज़ा देने वाले खुद ही थे। आजकल यही किसी नेता को लेकर कहा जा रहा है इस के साथ चाणक्य का नाम जोड़कर कि उन्होंने कहा था जब सारा विपक्ष किसी का विरोध करे तो समझो बाकी सब झूठे और केवल वही सच्चा है। अब ऐसे नासमझ लोगों को कौन बताये कि चाणक्य के युग में लोकशाही नहीं थी पक्ष विपक्ष नहीं था राजपाट था और राजा की हर बात सच मानी जाती थी। राजा नंगा है कहना अपराध था मगर अब लोग चुनते हैं अपना शासक नहीं सेवक और अपनी गलती पर सर धुनते हैं। जिनको लगता है बुराई होना अच्छे होने का सबूत है उनको बदनाम लोगों के नाम याद करवाने होंगे। लालूजी को ही ले लो बदनामी से उनकी शोहरत ऐसी है कि चारा घोटाला अपनी मिसाल खुद है। बदनाम होने से भी नाम होता ही है मगर बदनाम के सामने हाथ जोड़ते हैं डर से आदर से नहीं। लोकशाही में डराने वाला नेता नहीं चाहिए जो गब्बरसिंह की तरह घोषणा करे कि मुझ से मेरे सिवा कोई नहीं बचा सकता है। मगर दलील देने वाले चाहते हैं भयभीत होकर भी उसी को चुनें लोग और यकीन भी करें जिसकी किसी बात का कोई भरोसा नहीं जानते हैं। सिरफिरे आशिक़ कहते हैं तुझे किसी और की होने नहीं दूंगा मेरी नहीं तो किसी की नहीं ऐसे ज़ोर ज़बरदस्ती से कोई प्यार नहीं किया करता। ये लोग बहशीपन को मुहब्बत साबित करना चाहते हैं। देश की जनता कोई बेबस नारी नहीं है जो विवश होकर किसी को वरमाला पहना देगी सवा सौ करोड़ लोग किसी दल या नेता के भरोसे नहीं हैं अपने जीवट से जीते हैं शान से हर हाल में अपना सर उठाकर। चाणक्य या किसी नाम पर कुछ बोलने से आपकी गलत धरना सही साबित नहीं हो सकती है। 
 
                      बात परंपरा की करते हैं तो लोग मानते हैं कि किसी को गाली देने से अपनी ज़ुबान खराब होती है और बदमाश से घबराते नहीं उसे अहमियत नहीं देते हैं। जनता को ख़ामोशी को कमज़ोरी समझने वाले कहीं के नहीं रहे इतिहास बताता है। हम उस तरह के लोग हैं जो बड़े से बड़े मुजरिम को माफ़ करने का मादा रखते हैं और जिसका हर कोई विरोधी बन गया है उसने किसी का कोई भला नहीं किया होगा अन्यथा हम बुराई में भी अच्छाई देखने वाले लोग सोचते हैं उसने ऐसा बड़ा गुनाह किया तो किया कैसे देखने में तो कितना भला लगता था। शायद चाणक्य की दलील देने वाले इस बात को भूल गये हैं कि अधिक वक़्त नहीं हुआ जब उसी को सर आंखों पर बिठाया था विश्वास किया था चुना भी था तब आपको चाणक्य की कही कोई बात नहीं याद आई थी बताने को कि ऐसी भूल करने का अंजाम क्या होता है। हां आज आपको इक कहावत याद दिलवानी है कि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती है। लोग इतने नासमझ भी नहीं हैं कि हर बार मीठा ज़हर खाने की भूल करें। झूठ कितना मीठा लगता हो इक दिन सच के सामने आकर अपना वजूद खो देता है। दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है और हम लोग फिर आसानी से किसी के भी , जी हां उसके ही नहीं किसी और के भी झांसे में नहीं आने वाले हैं। लोग ऐसे सबक को खुद याद रखते हैं किसी चाणक्य या किसी और की कही बात से हर बात नहीं समझी जाती है। इस युग के लोग अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी समझा जाएंगे हर चमकने वाली चीज़ वास्तव में सोना नहीं होती है। आपके पीतल की वास्तविकता सामने है और उस पर चढ़ी परत कभी की उतर चुकी है अब आपकी हर दलील बेअसर है।

नवंबर 28, 2018

हम इस देश के वासी हैं ( उलझन ) डॉ लोक सेतिया

     हम इस देश के वासी हैं ( उलझन ) डॉ लोक सेतिया 

     साफ भले नहीं कहते क्योंकि संविधान इसकी अनुमति नहीं देता फिर भी ऐसे लोग आज भी हैं जिनको लगता है भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं हिन्दु राष्ट्र होना चाहिए। उनकी नज़र में धर्म अलग अलग होने से एक ही अपराध अलग तरीके से परिभाषित किया जा सकता है। केवल वही नहीं तमाम लोग हैं जो ऐसा ही चश्मा जाति अथवा क्षेत्र को लेकर रखते हैं। खेद की बात है देश में अभी भी हम सभी भारतीय नागरिक हैं की भावना का अभाव है। पंजाब का बटवारा हुआ तो हरियाणा में कुछ लोग समझने लगे कि हरियाणा उनकी जाति का अधिकार है और उनकी नज़र में जो आज़ादी के बाद विभाजन में दूसरी तरफ से आकर बसे यहां वो शरणार्थी हैं। मगर उन लोगों ने मेहनत से हरियाणा को अपनाकर आगे बढ़ाने में बहुत योगदान दिया है। कुछ लोग आज भी उस वर्ग से बनाये मुख्यमंत्री को पसंद नहीं करता इसलिए नहीं कि उसे विधायकों ने नहीं चुना बल्कि थोपा गया है बल्कि इसलिए कि वो उसी जाति का है जो कभी दूसरे देश से आये थे विभाजन को। अब कम से कम खुद उनको तो किसी और को लेकर ऐसी संकीर्णता मन में नहीं रखनी चाहिए। ऐसे कई देश हैं जो बाहर से आये लोगों से बने हैं मगर वहां सभी खुद को उसी देश का नागरिक मानते हैं। जब भारत से कोई जाता है तो भले उनसे अपनेपन से मिलते हैं मगर इस का मतलब कदापि ये नहीं कि उनकी निष्ठा उस देश से नहीं है। ठीक इसी तरह जो लोग सीमा पार से आये थे उनकी बहुत यादें उधर से जुड़ी थी और उसकी बात भी किया करते थे लेकिन उनकी देश भक्ति भारत के लिए ही रही है और जब जब उस देश से जंग हुई उनकी भावना भारतवासी की ही थी और रही है। इसी तरह जो किसी भी धर्म वाले विभाजन में इस देश में रहने को चुनकर रहते आये हैं उनकी भी देश भक्ति की भावना भारतीयता की ही रही है। इसलिए जब कोई राजनेता धर्म के नाम पर बांटकर सत्ता पाना चाहता है तो उसकी चाल को समझना चाहिए। 
 
          सत्ताधारी दल और विपक्ष कोई दुश्मन नहीं होते हैं स्वस्थ्य लोकतंत्र की बुनियाद हैं। मगर इधर जो नफरत की और विचारधारा को छोड़ बेकार बातों की राजनीति करते हैं उनको बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। सबसे पहले हमारा संविधान किसी भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को नहीं चुनता है बल्कि सदन का सदस्यों का चयन होता है और सदन को चुनना चाहिए किसे नेता चुनना है जो अभी तक वास्तव में नहीं होता है। जो दल अपने सांसदों विधायकों को संविधान से मिले अधिकार से वंचित करता है उस से देश की जनता और सामान्य नागरिक के अधिकार की रक्षा की उम्मीद ही नहीं की जा सकती है। इसलिए जब कोई आपसे वोट मांगने आये तो उससे अवश्य पूछना कि देश का संविधान अपने अधिकार और जनता के अधिकार को महत्वपूर्ण मानता है ये फिर किसी दल अथवा नेता के हाथ की कठपुतली बनकर आपको और सदन व संविधान को धोखा देने का कार्य करेगा। वास्तविक सवाल लोकतंत्र और संविधान का है और चुनाव केवल विचारधारा की बात को लेकर होना चाहिए। विचारों की शून्यता बहुत बड़ी चिंता का विषय है। 

 

राधा मीरा और सीता ( वार्तालाप ) डॉ लोक सेतिया

      राधा मीरा और सीता ( वार्तालाप ) डॉ लोक सेतिया 

      विधि ने तीनों को आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया। गले मिल कर तीनों अपनी अपनी कहानी याद करने लगी। सीता जी बोलीं तुम दोनों को आज भी लोग प्यार की देवी मानते हैं पूजते हैं कोई लांछन लगाने  की बात नहीं करता कभी। मैं आज भी समाज से इंसाफ की आस लिए तड़पती रहती हूं। तुम्हें आज भी कोई भला बुरा नहीं कहता कि जिस से सामाजिक संबंध नहीं था उसको चाहती रही। उसके नाम की रट लगाती रही मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई। तुम रास रचाती रही कान्हा संग नाची झूमी उसकी सखी बन उसकी बांसुरी भी सुनती रही और बंसी को छीनती भी रही छेड़खानी भी की। कभी खुद को कृष्ण कन्हैया की दासी नहीं समझा तुमने। मैंने अपने राम के लिए महल छोड़ा बनवास झेला कभी सुख से नहीं रही फिर भी मुझे अग्नि परीक्षा के बाद भी त्याग दिया वो भी बिना अपराध बताए हुए ही। मेरा अस्तित्व आज भी अपने खुद का कोई नहीं समझता है और जिसने मुझे छोड़ा आज तक उसी की राम की पत्नी होना ही मेरी नियति है। राधा तुमने दूरी का दुःख झेला मीरा तुमने ज़हर का प्याला पी लिया मगर मुझे पल पल जिस विष को लांछन को चुप चाप सहना पड़ा और अपनी संतान को जन्म देने को इक राजा की बेटी इक राजा की पत्नी को इक वाल्मीकि की कुटिया में रहना पड़ा उसे जीना नहीं क्षण क्षण मरना कह सकते हैं। किसी राजा के लिए पत्नी कोई मूरत है जब यज्ञ में ज़रूरत तब सोने की सीता बनाकर काम चला लिया जिस में जीवन नहीं था निर्जीव पुतला था। शासक आज भी जीवित लोगों से अधिक मोह धातु के पुतलों से रखते हैं , जनता सीता की तरह बेबस भटकती है और शासक मनमानी करते हुए भी महानता का दम भरते हैं। आज की नारी अभी भी मेरी व्यथा को नहीं समझती है तभी पति से अलग अपना अस्तित्व नहीं खोजती है उसे आज भी सीता जो उनकी तरह इक महिला थी आदर्श नहीं लगती है और आज भी राम के मंदिर उसकी आरती की बात करती हैं। जो मुझे नहीं मिला इतने बड़े कुल की बेटी बहु को इनको मिल कैसे सकेगा उसी राह पर चल कर। मगर जानती हूं आजकल की महिलाओं को सीता राम की पत्नी को पूजना है और कुछ भी हो कितने अन्याय अत्याचार सहने पड़ें साथ रहना है अस्तित्वविहीन होकर मगर साहस से अधिकार अथवा खुद को अपने भरोसे न्याय को लड़ना नहीं है। रावण आज भी मनमानी करते हैं सज़ा आज भी उसी नारी को मिलती है जिसके साथ छल किया रावण ने साधु बनकर। महिलाओं को अभी भी रावण की पहचान नहीं है। राधा और मीरा दोनों ने इक साथ कहा कि हमने समझ लिया था जिसे चाहती हैं उसे पाना ज़रूरी नहीं है और खुद को मिटाकर तो हर्गिज़ नहीं। कोई हमें छोड़ता इसकी नौबत नहीं आने दी हमने प्यार की भीख नहीं मांगी उससे। हम हम हैं किसी के नाम के बिना भी हम खुद अपने दम पर रही हैं , दुनिया समाज कभी नारी को आज़ादी नहीं देती न कभी देगी ही जिस दिन महिलाओं को इतनी सी बात समझ आ गई वो अपने नाम को किसी के भी नाम से जोड़ना नहीं चाहेंगी वो चाहे पिता हो पति हो या संतान हो। मुझे लगता है मेरी बहन उर्मिला का दर्द मुझसे भी अधिक है मगर किसी ने उसकी चर्चा तक नहीं की। 

        शायद बहुत लोग सोचेंगे कौन उर्मिला। आपको बताना चाहता हूं राजा जनक की ही बेटी मिथिला की छोटी राजकुमारी सीता जी की छोटी बहन और लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला थी। जिनको उनकी कथा मालूम नहीं कुछ लोग समझते हैं सीता जी तो महल को छोड़ बनवास में पति के साथ गई और शायद लक्ष्मण की पत्नी महल में सुख पूर्वक रहती रही मगर ऐसा नहीं है। बड़ी बहन और पति दोनों ने उर्मिला को बनवास साथ जाने नहीं दिया और महल में सभी की सेवा करने का आदेश दिया और जब ससुर दशरथ की मृत्यु हुई तो वो अकेली थी मगर पिता के कहने पर भी मिथिला जाने को नहीं मानी। घर सभी का ध्यान रखने के साथ इक और भी समस्या थी उर्मिला की। लक्ष्मण ने वन में कुटिया बनाई भाई राम और माता सीता के लिए और खुद बाहर रखवाली को खड़ा रहा। जब नींद की देवी सामने आई तब नींद की देवी से लक्ष्मण ने वरदान मांगा था भाई राम की सेवा और सुरक्षा को जागते रहने का और देवी ने बदले में 14 साल तक अपनी नींद किसी और को देने को कहा तो लक्ष्मण ने अपनी पत्नी को दे दी अपने हिस्से की नींद। उर्मिला को सोते रहने पड़ा। और इतना ही नहीं बनवास के बाद जब राम का राजतिलक हुआ तब देवी के आदेश अनुसार लक्ष्मण की बारी थी अगले 14 साल सोते रहने की और उर्मिला की उसके बाद जागते रहने की। नवविवाहिता को पति से अलग रहना और दोबारा मिलने पर भी उस से कोई संवाद तक नहीं कर पाना इससे बड़ी सज़ा क्या हो सकती थी। रामायण लिखने वाले ने सब कथा अपने राम को ऊंचा बड़ा और महान बनाने के अनुसार समझाई है और जब राम को भगवान बना दिया तो उसके आचरण पर सवाल उठाने का कोई जतन भी नहीं कर सकता है। 
 
    आपको ऐसा रामराज्य पसंद हो सकता है जिस में पत्नी भाई सभी अपना सुख त्याग करें और तब भी गुणगान शासक का हो। जो अपनी पत्नी तक को न्याय नहीं दे सकता उसका न्याय कैसा होगा जिस में अपनी आलोचना ही निर्णय करने को विवश करती हो। 

नवंबर 26, 2018

न धर्म न देशभक्ति केवल तमाशा ( आडंबर ) डॉ लोक सेतिया

  न धर्म न देशभक्ति केवल तमाशा ( आडंबर ) डॉ लोक सेतिया 

    धार्मिक स्थल बनाना मंदिर मस्जिद गिरजाघर जाना गुरुद्वारे जाकर सीस झुकाना धर्म नहीं है। अगर आपको यही धर्म लगता है तो पढ़ कर बताओ किस धार्मिक किताब में ऐसा लिखा हुआ है या समझाया गया है। मुझे आज तक किसी किताब में मंदिर मस्जिद आदि बनाने और वहां जाने की बात पढ़ने को नहीं मिली है। सदकर्म करना सदमार्ग पर चलना सच बोलना न्याय का पक्ष लेना सबको प्यार करना भाईचारा कायम रखना ज़रूरतमंद की सहायता करना लोगों के दुःख दर्द समझना उनको दूर करना किसी को सहारा देना किसी को शिक्षा या ज्ञान पाने में सहायक होना यहां तक कि किसी डूबते को बचाना किसी को सही राह दिखलाना किसी अंधे अपाहिज को मंज़िल तक पहुंचाना जैसे सभी काम करना धर्म बताया गया है। अपने किसी धार्मिक किताब में देवी देवताओं द्वारा तपस्या करने की बात में कहीं भी नहीं पढ़ा होगा किसी धार्मिक स्थल पर पूजा अर्चना का ज़िक्र तक। नानक की उदासियां किसी गुरूद्वारे की बात नहीं हैं , बुद्ध किसी बड़े धार्मिक स्थल नहीं गये , समाज सुधारक महान लोग भी जगह जगह जाकर उपदेश और ज्ञान की बात करते थे और समाज को तमाम गलत परंपराओं को बंद करने को समझाते रहे। सबसे बड़ी बात किसी भी साधु संत गुरु या मसीहा फरिश्ता को आपस में नफरत करने की बात नहीं की है। कबीर जैसे लोग हर अंधविश्वास पर चोट करते रहे नानक भी और विवेकानंद भी कोई उनमें अंतर नहीं खोज सकता। इन सब को पढ़ो तो सामने जो आता है वो एक ही धर्म है मानवता का धर्म। जब इसको समझ लिया तब आपको आजकल जो नज़र आता है वो केवल आडंबर ही समझ आएगा और आडंबर दिखावा वही करते हैं जो वास्तव में उस पर नहीं चलते हैं। 
 
      जिनको लगता है सत्ता मिलने पर बाप दादा की कई एकड़ ज़मीन पर समाधि बनाने से वो महान हो जाएंगे या किसी नेता की ऊंची मूर्ति से उसका नाम बड़ा हो जाएगा वही संकीर्ण मानसिकता आडंबर करती है धार्मिक आयोजन या धार्मिक स्थल बनवा अपना नाम लिखवाने की खातिर। भगवान खुदा ईश्वर इनके लिए वास्तविक आस्था की नहीं अपने मकसद हासिल करने को हैं। धर्म की राह चलना कठिन है और धार्मिक लिबास या सवरूप धारण करना आसान है , इधर भगवा वेस धारण करने वाले या अन्य धर्मों का पहनावा धारण करने वाले धर्म के सिवा सब करते हुए दिखाई देते हैं। जिस देश में करोड़ों लोग बेघर हैं भूखे सोते हैं और लोगों को शिक्षा स्वास्थ्य पीने का पानी तक नहीं मिलता और जीवन की बुनियादी सुविधाएं मुहैया नहीं हैं आज़ादी के 71 साल बाद उस में गरीबी और अन्याय की असमानता की बात को छोड़ कर धर्म के आडंबर की बात की राजनीति करने वाला हर दल देश और समाज की भलाई की नहीं सत्ता की मलाई की चाहत रखता है। धर्म धर्म नहीं अधर्म बन जाता है जब कोई धर्म को  भी स्वार्थ सिद्ध करने को उपयोग करने लगता है। 
 
        राजनेता कारोबारी लोग या फिर धर्म का चोला पहने मतलबी लोग जनता को मूर्ख समझते हैं और बातों से बहलाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। इक्कीसवीं सदी में आधुनिक युग में भी अगर हम सही और गलत सच और झूठ असली और नकली का भेद नहीं कर सकते तो फिर हमारा कोई विवेक कोई ज़मीर ही नहीं है और विवेकशून्यता कोई उचित मार्ग नहीं बता सकती है। धर्म को समझने को विवेक पहली ज़रूरत है और ज़मीर बतलाता है उचित अनुचित का अंतर उसी को धर्म कहते हैं।


नवंबर 24, 2018

चुनाव जीतने का शर्तिया घोषणापत्र ( व्यंग्य विनोद ) डॉ लोक सेतिया

चुनाव जीतने का शर्तिया घोषणापत्र (व्यंग्य विनोद)  डॉ लोक सेतिया 

    ................  दल शपथ पूर्वक वादा करता है कि जनमत मिलने और जीतने के बाद सरकार बना कर सुनहरे दिन लाएंगे। सुनहरे दिन को आप कोई झूठा सपना अथवा जुमला समझने की भूल नहीं करें क्योंकि ऐसा हमने चुनाव आयोग को बंद लिफाफे में दस्तावेज़ सौंपा है ठीक उसी तरह जैसे अदालत को कोई विभाग गोपनीय रिपोर्ट देता है। आपको सोशल मीडिया और टीवी अख़बार की झूठी खबरों पर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि उनको कुछ भी मालूम नहीं है इस बारे में। सुनहरे दिन में आपकी कोई भी समस्या समस्या नहीं रहेगी बल्कि समस्या खुद समाधान बन जाएगी। आप सोचेंगे ऐसा कब तक संभव होगा तो हम पांच साल क्या पांच दिन भी नहीं मागेंगे अपनी योजना को लागू करने को। आप सभी मानते हैं कोई भी इंसान सब कुछ नहीं कर सकता है मगर ऊपर वाला चुटकी बजाते ही सब कर सकता है। आपको अभी तलक सरकारों पर निर्भर रहना पड़ा है मगर हमारी सरकार आपको भगवान पर भरोसा करने की राह चलाएगी। ऊपर वाला जो भी करता है अच्छे को करता है यहां तक कि हमारे दल की जीत हार भी उसी की मर्ज़ी से होगी। वो चाहेगा तो आप वोट देने को खुद विवश हो जाओगे। देने वाला इक वही है और किसी से मांगना भी उचित नहीं है। सुनहरे दिन कैसे होंगे बताने की ज़रूरत नहीं है बस समझ लो जैसे सुनहरे ख्वाब अपने देखे हैं उसी तरह के। 
 
        सबको बारी बारी सभी कुछ मिलेगा , सत्ता भी हर दिन बारी बारी हर सांसद को हासिल होगी। एक दिन की बादशाहत का चलन होगा और एक दिन आपको भी शहर में सत्ता का पद अधिकारी नियुक्त करना जैसा किया जाएगा कोई भी स्थाई नहीं होगा। पांच साल में कोई भी वंचित नहीं रहेगा सब को एक दिन चौबीस घंटे मनमर्ज़ी की पूरी छूट मिलते ही हर कोई जीवन भर के लिए सुख सुविधा जमा कर लेगा। संविधान की बात की चिंता मत करें संविधान की भावना यही है कि कोई छोटा बड़ा नहीं हो और सभी को हर अवसर मिलना चाहिए। कौन है जो ऐसा नहीं सोचता कि काश वो सत्ता पर आसीन होता तो सब समस्याओं का समाधान पल भर में कर देता। इस तरह आपको भी अवसर मिलेगा मगर तब आपकी मर्ज़ी है कि पहले के नेताओं की तरह अपने बारे सोचते हैं या बाकी सब के लिए जैसे हमारा दल विचार कर रहा है। एक दिन को किसी को भी कुछ भी बनाया जा सकता है पर आपकी मर्ज़ी है कि आपने सरकारी ऐप्प पर क्या बनने को दर्ज करवाया है नाम अपना। लॉटरी की तरह रोज़ सुबह नाम सामने आता रहेगा कि आज कौन किस जगह किस पद पर नियुक्त होगा। समझदार लोग अधिक ऊंचे पद की जगह ऐसे पद पर नाम दर्ज करवाएंगे जिस में भीड़ अधिक नहीं हो। चिंता उन लोगों को होगी जो खुद को स्थाई समझते रहे हैं जबकि इस दुनिया में कुछ भी स्थाई होता नहीं है। मगर क्योंकि उन्होंने इतने सालों में ज़रूरत से बढ़कर जमा किया हुआ है इसलिए उनको छुट्टी पर भेजा जाएगा आराम करने को। आपको पता ही है सरकार किसी को भी छुट्टी पर भेज सकती है जब भी चाहे भले आधी रात को ही और कब तक छुट्टी पर हैं इसका भी कोई पता नहीं होगा। जब पुराने ढंग से बात नहीं बनती तभी नये तरीके ईजाद किये जाने ज़रूरी हैं। आपने सभी दलों को नेताओं को आज़माया है सब एक जैसे हैं एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। इस बार सबको ताश के पत्तों की फेंट कर देखना बाज़ी पलट सकती है। अब आपको गुलाम नहीं बादशाह बनना है और गलती से किसी नेता के चेहरे का मुखौटा मत लगाना क्योंकि अबकी बार वोटर ही होगा सरकार और राजनेताओं का करना है बंटाधार। आगे आप लोग खुद हैं समझदार , थोड़ा सोचना समझना करना विचार। चिंता करना छोड़ दो मेरे यार चिंता की चिंता है बेकार।


वह दो खुशनसीब ( वास्तविक घटना ) डॉ लोक सेतिया

      वह दो खुशनसीब ( वास्तविक घटना ) डॉ लोक सेतिया 

    कल सुबह की बात है मुझे मेरी धर्मपत्नी ने आकर बताया कि देखना दो लोग अपने घर के सामने इक साथ बैठे हैं जो बेहद खुश दिखाई देते हैं। आजकल झूठी मुस्कान वाले लोग ही मिलते हैं सच्ची ख़ुशी देखे ज़माना हो गया है। ख़ुशी ऐसी दौलत है जो इधर खो गई है। मैं जाकर मिला उनसे बात की और पूछा भाई आपको ये दौलत मिली किस तरह से , पता चला बचपन के दोस्त हैं और अचानक मुलाकात हो गई है। उनकी बाकी बात बताने से पहले अपनी बात करता हूं ताकि आपको फिर से याद दिलवा दूं दोस्ती मेरे लिए इबादत है ईमान है। आज उनकी बात से फिर उम्मीद जागी है कि अभी भी दुनिया में दोस्ती कायम है और मुझे जिस दोस्त की तलाश है वो ज़रूर मिलेगा किसी दिन। कुछ दिन पहले की घटना याद आई फिर से , पार्क में दो लोग आपस में बहस कर रहे थे एक का कहना था कि तुम मुझे जानते नहीं मैं इस शहर को खरीद सकता हूं और दूसरा कह रहा था तुझे मालूम नहीं मैं कौन हूं तुझे जेल में बंद करवा सकता हूं और ज़मानत भी नहीं होगी। हुआ कुछ भी नहीं लकड़ी की नहीं कागज़ी तलवारों की जंग थी। पता चला एक पत्रकार है जो अख़बार की नौकरी करता है मगर शहर को खरीदने की बात कहता है और दूसरा सेवानिवृत सुरक्षाकर्मी है। अहंकार की दौलत हर किसी के पास है किस बात का अहंकार है कोई नहीं जनता। मगर अब दोस्ती की बात और दोस्ती पर मेरे कुछ शेर और रचनाएं छोटी छोटी। 

जा के किस से कहें हमको क्या चाहिए ,

ज़हर कोई न कोई दवा चाहिए।


और कुछ भी तो हमको तम्मना नहीं ,

सांस लेने को थोड़ी हवा चाहिए।


हाल -ए -दिल आ के पूछे हमारा जो खुद ,

ऐसा भी एक कोई खुदा चाहिए।


अपनों बेगानों से अब तो दिल भर गया ,

एक इंसान इंसान सा चाहिए।


देख कर जिसको मिट जाएं दुनिया के ग़म ,

कोई मासूम सी वो अदा चाहिए।


जब कभी पास जाने लगे प्यार से ,

बस तभी कह दिया फ़ासिला चाहिए।


ज़िंदगी से नहीं और कुछ मांगना ,

दोस्त "तनहा" हमें आपसा चाहिए।

             मेरी निगाह में दोस्त खुदा से बढ़कर है और दोस्त मिल जाये तो दुनिया की सारी दौलत मिल गई है। मुझे दोस्त मिलते रहे और बिछुड़ते रहे हैं और दोस्त बनकर दुश्मनी करने वाले भी मिले हैं मगर फिर भी मेरा इक ख्वाब है कि कहीं कोई एक सच्चा दोस्त है जो मेरी तरह दोस्ती की चाहत रखता है। इक ग़ज़ल है यही सोच कर लिखी थी छह साल पहले जब बीमार होकर अस्पताल में भर्ती था।

जिये जा रहे हैं इसी इक यकीं पर ,

हमारा भी इक दोस्त होगा कहीं पर।


यही काम करता रहा है ज़माना ,

किसी को उठा कर गिराना ज़मीं पर।


गिरे फूल  आंधी में जिन डालियों से  ,

नये फूल आने लगे फिर वहीं पर।


वो खुद रोज़ मिलने को आता रहा है ,

बुलाते रहे कल वो आया नहीं पर।


किसी ने लगाया है काला जो टीका ,

लगा खूबसूरत बहुत उस जबीं पर।


भरोसे का मतलब नहीं जानते जो ,

सभी को रहा है यकीं क्यों उन्हीं पर।


रखा था बचाकर बहुत देर "तनहा" ,

मगर आज दिल आ गया इक हसीं पर।


           इक छोटी सी लघुकथा भी लिखी थी आजकल की हालत को देख कर। पढ़ सकते हैं।

      फुर्सत नहीं ( लघुकथा ) डॉ लोक सेतिया

बचपन के दोस्त भूल गये थे महानगर में रहते हुए। कभी अगर पुराने मित्र का फोन आ जाता तो हर बार व्यस्त हूं , बाद में बात करना कह कर टाल दिया करते। कहां बड़े शहर के नये दोस्तों के साथ मौज मस्ती , हंसना हंसाना और कहां छोटे शहर के दोस्त की वही पुरानी बातें , बोर करती हैं। लेकिन जिस दिन एक घटना ने बाहर भीतर से तोड़ डाला तब यहां कोई न था जो अपना बन कर बात सुनता और समझता। महानगर के सभी दोस्त कहां खो गये पता ही नहीं चला। तब याद आया बचपन का पुराना वही दोस्त। फोन किया पहली बार खुद उसे अपने दिल का दर्द बांटने के लिये। तब मालूम हुआ कि वो कब का इस दुनिया को अलविदा कह चुका है। पिछली बार जब उसका फोन आने पर व्यस्त हूं कहा था तब उसने जो कहे थे वो शब्द याद आ गये
आज। बहुत उदास हो कर तब उसने इतनी ही बात कही थी "दोस्त शायद जब कभी तुम्हें फुर्सत मिले हमारे लिये तब हम ज़िंदा ही न रहें"। तब सच्चे मित्र को नहीं पहचाना न ही उसकी भावना को समझा , उसका हाल पूछा न उसका दर्द बांटना चाहा तो अब उसको याद कर के आंसू बहाने से क्या हासिल।

                      मैंने पहले भी कई बार बताया है कि मेरा इश्क़ मेरा प्यार मेरा जूनून लिखना है। मैं लिखने से इतना प्यार करता हूं कि बिना लिखे रहना ठीक उसी तरह है जैसे सांस लिए बिना पल भर भी जीना संभव नहीं है। किसी और से मुहब्बत करना मुमकिन नहीं था क्यों प्रेम की गली में कोई दूसरा नहीं समा सकता है। मेरा लेखन उसी अनजान अजनबी दोस्त के नाम है सभी कुछ कविता ग़ज़ल कहानी जो भी है। अब कल जो दो लोग मिले उन दोस्तों की खुशनसीबी की बात बताता हूं।

                         घर का पता ( लघुकथा ) डॉ लोक सेतिया

     राजपाल और वेद यही उनके नाम हैं। गांव के बचपन के सबसे अच्छे दोस्त हैं। कोई दस साल पहले राजपाल गांव से शहर चला आया और वेद उसके पास किराये के कमरे पर दो बार मिलने आया भी। फिर फोन लिया दोनों ने और फोन पर बात करने लगे शादी पहले हो चुकी थी दोनों की ही। राजपाल ने शहर में इक बस्ती में जगह लेकर मकान बना लिया था मगर आजकल लोग घर का पता नहीं लेते देते और फोन नंबर से ही काम चलाते हैं। फोन नंबर था दोनों के पास घर का पता पूछना ध्यान ही नहीं रहा। कई साल पहले राजपाल ने जब फोन नंबर नया लिया जैसा इधर अधिकतर लोग करते हैं तब अधिक पढ़ा लिखा नहीं होने के कारण दोस्त का नंबर सुरक्षित करना भूल गया। और सम्पर्क टूट गया था सालों से मगर राजपाल कुछ कारण से गांव भी नहीं जा सकता था और वेद को याद किया करता था। उसने बताया कि दो दिन पहले उसको लगा कि सस्ती कॉल दर और डाटा के चक्कर में नंबर बदलना उसे बहुत महंगा पड़ा है और इत्तेफाक से अगली सुबह बस के अड्डे पर उसने वेद को बैठे देखा तो लगा जैसे भगवान ने उसकी सुन ली है। आपको ये बात बताने का मकसद ये भी है कि जब भी कोई अपना दूर हो तब उस से फोन नंबर ही नहीं लें दें बल्कि अपना घर का दफ्तर का पता भी बदलने पर लिख कर रखते रहें। फोन नंबर बदलता रहता है कभी पहुंच से बाहर होता है मगर घर मकान का पता होने पर जब दिल चाहे मिलने जा सकते हैं , बुला सकते हैं। मेरे दोस्त डॉ बी डी शर्मा की क्लिनिक पर इक इबारत लिखी रहती थी। दोस्त के घर तक की सड़क कभी लंबी नहीं होती है , स्वागत है।


नवंबर 22, 2018

बंद बक्से में छुपे राज़ ( पर्दे के पीछे ) डॉ लोक सेतिया

     बंद बक्से में छुपे राज़ ( पर्दे के पीछे ) डॉ लोक सेतिया 

    पर्दा उठता है तभी समझ आता है पीछे क्या क्या छुपा हुआ था। सीबीआई बनाम सीबीआई का सच ऐसा भी हो सकता है नहीं कल्पना तक की थी। आंच पीएमओ से आगे सुरक्षा सलाहकार तलक पहुंची तब लगा अभी कितनी पर्तें खुलनी हैं। देश का सुरक्षा सलाहकार जब सीबीआई में दखल दे रहा हो और बड़े बड़े अधिकारी अदालत को शपथ लेकर बता रहे हों कि उनको किस किस तरह से दबाव डालकर गंदा खेल खेला जा रहा था तब अदालत को इतनी गंदगी की सड़ांध से अधिक चिंता अपने आदेश की गोपनीयता की होना भी डराता है। आपको किसी संस्था की छवि बचाने की चिंता होनी चाहिए या ऐसे किसी संस्था को ठीक करने की , किसी के भीतर की गंदगी कालीन के नीचे दबाने छिपाने से उसको खत्म नहीं किया जा सकता है। जब कोई चेहरा दाग़दार हो तो आईने को दोष देना या उसे तोडना हल नहीं हो सकता। सब से बड़ी अदालत को सबसे पहले देश और संविधान की चिंता होनी चाहिए। सच जो भी है पूरा सामने लाना चाहिए बेशक सच कितना कड़वा ही क्यों नहीं हो। अदालत ने कहा कि आप सभी इस काबिल नहीं हैं कि आपकी बात सुनी जाए।  एक लाइन में बिना कहे सब समझा दिया सर्वोच्च न्यायलय ने सीबीआई केस की सुनवाई करते हुए इनकार ही कर दिया , पहले जवाब दो गोपनीय बात मीडिया तक लीक हुई क्यों। हो सकता है ऐसी तल्ख़ टिप्पणी को भी लोग चार दिन में भुला दें मगर समझा जाए तो ये बेहद चिंताजनक हालत है। बड़े बड़े पदों पर या नामी वकील समझे जाने के बावजूद भरोसा किस पर किया जाए नहीं समझ आता। ग़ज़ल कहने वाले गर्व करते हैं कि दो मिसरों में हर बात पूरी कर देते हैं मगर यहां कुछ शब्दों में एक लाइन में जो कहा उसका विस्तार बहुत है। बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। सोचता हूं कभी मकान बड़े ऊंचे नहीं हुआ करते थे पर उन में रहने वालों के कद उनके आचरण के कारण महान हो जाते थे। नैतिकता और ईमानदारी सच्चाई की राह पर चल कर इंसान होकर भी फरिश्ता लगा करते थे। कोई छोटा सा ओहदा मिलते ही भावना रहती थी कि अपने पद की गरिमा को कम नहीं होने देना है आज बड़े से बड़ा अधिकारी विचार ही नहीं करता कि उस जगह होते हुई कोई घटिया काम कर कैसे सकता है। राजनेताओं के ब्यान और कारनामें देख कर लगता है लाज शर्म को ताक पर रख आए हैं। किसी वकील ने किसी राजनेता के झूठ बोलने पर इक वाक्य बोला था , ये कहना बेकार है कि आपको शर्म आनी चाहिए। लेकिन आज तमाम बड़े बड़े पद वाले अधिकारीयों और राजनेताओं की दशा उस तरह की दिखाई देती है। वास्तव में बहुत देर हो चुकी है फिर भी इस पर अंकुश लगाना होगा और तय करना होगा कि जो भी बड़े पद पर अथवा सत्ता के सिंहासन पर हो उसको अपनी मर्यादा का पालन करना लाज़मी हो अन्यथा उसको कोई भी अनुचित कार्य करते ही पद से हटाया जाना चाहिए।

           नियम सब पर लागू होने चाहिएं , मीडिया पर भी धर्म वालों पर भी कारोबार करने वालों पर भी , सरकार के अधिकारी कर्मचारी चाहे पुलिस न्यायपालिका का हिस्सा बने लोग हों या खुद को ख़ास समझने वाले नायक अभिनेता खिलाड़ी जो भी हो। अधिकार पाना चाहते हैं मगर उत्तरदायित्व निभाने को तैयार नहीं कोई भी। मनमानी या सत्ता और अधिकार की निरंकुशता पर रोक लगाना ज़रूरी है। हम समय के साथ सभ्य और परिपक्व होने की जगह गैरज़िम्मेदार बनते गये हैं और सत्ता पद अधिकार पाकर अपने कर्तव्य निर्वाह करने को भूल खुद को नाकाबिल साबित करने लगे हैं। ज्ञान और शिक्षा इंसान को बेहतर बनाने को है और अगर डॉक्टर वकील अधिकारी  या अख़बार के संपादक टीवी चैनल के एंकर पत्रकार बन कर हम इंसानियत ईमानदारी नैतिकता और कर्तव्य को भूलते हैं तो अच्छा होता अनपढ़ गंवार ही रहते। आपको हथियार मिलता है औरों को सुरक्षा देने को मगर आप अगर उसका उपयोग किसी को कत्ल करने या घायल करने को करते हैं तो आपका अपराध अधिक गंभीर हो जाता है। आजकल यही होता दिखाई देता है। मगर सवाल इंसाफ का है और देश के संविधान को सुरक्षित रखने का पहले है। ऐसा पहली बार होता दिखाई दिया है कि कोई सत्ता पाकर सब कुछ अपने आधीन करने को व्याकुल है बेताब है और इसके लिए किसी सीमा तक जाने को तैयार है। अब अगर गोपनीयता को ढाल बनाकर सत्ता के असंवैधानिक कार्यों पर पर्दा डाला जाएगा तो देश का लोकतंत्र ही नहीं बचेगा। हर बड़े पद पर किसी एक संस्था या उसकी विचारधारा के लोग नियुक्त करना इक खतरनाक सोच को दर्शाता है। आज सामने आता है कि काला धन घोटाले की बात करने वालों को देश की कोई चिंता नहीं थी उनको ऐसी बातों को औज़ार बनाकर सत्ता पर काबिज़ होना था। जब सत्ता मिली तो ये सब उन विषयों पर खामोश हैं। सत्ता का दुरूपयोग और मनमानी करने से देश की आर्थिक दशा बदहाल कर दी है और अच्छा कोई भी काम किया नहीं है। मानसिकता बन गई है केवल एक दल भी नहीं बस एक नेता ही सही बाकी जो उसका विरोध करता है सब नेता नहीं देश के विरोधी हैं।

             अभी रिज़र्व बैंक तक को अपने आधीन करना चाहते हैं केवल सत्ता में जीतने को चुनाव में अच्छी तस्वीर दिखाने को। इतना संकीर्ण नज़रिया देश को किस तरफ ले जाएगा। मगर धन वो भी जनता का पैसा खर्च कर अख़बार टीवी चैनलों तक को विवश कर दिया है वास्तविकता नहीं दिखाने को और मीडिया देश हित और अपना कर्तव्य भूल कर सत्ता का पक्षधर बन गया है। ऐसे में सरकार और संगठन संस्थाएं कोई भी गैरकानूनी या अनुचित अथवा अनैतिक कार्य करें तो जनता को खबर नहीं होगी और जब कोई अधिकारी अदालत को बताना चाहे तो उसको सुनना ज़रूरी नहीं है क्या। क्या अंतर है उस बाबा में जो धर्म और समाजसेवा की आड़ में गुनाहों का अपना अड्डा बनाकर महान संत कहलाता रहा और उस सरकार में जो जनता को झूठे सपने दिखला कर सत्ता पर आसीन होने के बाद तमाम मर्यादाओं को ताक पर रखकर सत्ता की हवस और अपने विस्तार या गुणगान में मस्त हो गई है। 

 

नवंबर 21, 2018

तीसरा जहां ( अफ़साना ए मुहब्बत ) डॉ लोक सेतिया

     तीसरा जहां ( अफ़साना ए मुहब्बत ) डॉ लोक सेतिया 

     खुदा ईश्वर अल्लाह वाहेगुरु ईसामसीह जो भी नाम उसका है उसने दो जहान बनाये थे यही सब जानते हैं। इक जहां धरती आसमान नदियां समंदर पेड़ पौधे पशु पक्षी हवा पानी आग जाने कितना कुछ बनाया इस दुनिया में और खो गये सभी उसको खोजने में जो भी नहीं था उसे बनाने में। मगर यही भूल हुई कि विधाता की बनाई दुनिया में विधाता बनना संभव ही नहीं था। ये जिस का रचाया खेल है उसने ही तय किया हुआ है कि जब जो भी विधाता बनने की कोशिश करेगा उसका नामो निशान बाकी नहीं रहेगा। मगर इंसान के दिमाग में ये खलल हमेशा बनी रहे विधाता रुपी खिलाड़ी का खेल यही है। हमेशा से लोग जन्नत स्वर्ग वैकुंठ जैसे जहान की बातें कर अपना उल्लू सीधा करते रहे , खुद लोभ मोह लालच करने और दुनिया वालों को इन में नहीं फंसने की शिक्षा देकर। मगर कभी कभी इसी दुनिया में ऐसे भी लोग हुए जिनको ये दुनिया नहीं भाती थी और दूसरी दुनिया स्वर्ग नर्क जन्नत दोजख वाली की भी चाहत नहीं थी। उन्होंने हमेशा कल्पना की थी इक तीसरी दुनिया की जिस में प्यार हो मुहब्बत हो अपनापन हो फूल हों चांदनी हो और कुछ भी खराब नहीं हो। वो लोग किसी धर्म देश वर्ग भेद की बात नहीं करते थे और इश्क़ में अपनी अलग दुनिया बसाने की बात किया करते थे प्यार की मुहब्बत की दुनिया। आज आपको उस दुनिया की सैर करवाते हैं। 
 
           अभी अभी दो नये बशिंदे आये हैं फरिश्ता उनको लाया है और छोड़ गया है ठीक उसी तरह जैसे बाकी युगल आये हैं बारी बारी। परंपरा की तरह उनका अभिनंदन किया जा रहा है और बताया जा रहा है अब आप आज़ाद हैं सुरक्षित हैं और इस अपनी दुनिया में रह सकते हैं। शर्त केवल सच्चे प्यार को बनाये रखने की है सब इस जहान में सिर्फ और सिर्फ प्यार करते हैं कोई तकरार नहीं कोई झगड़ा लफड़ा हर्गिज़ नहीं। साथ मिलकर नाचने झूमने गाने के बाद सब पहले के बशिंदों ने उन से उनकी मुहब्बत की कहानी पूछी। ये भी पूछा कि क्या आजकल भी लोग उनकी तरह प्यार मुहब्बत इश्क़ करते हैं। इस पर नये आये दोनों ने सवाल किया ये बताओ इस दुनिया में इंटरनेट सोशल साइट्स स्मार्ट फोन की सुविधा किस तरह मिल सकती है। ये सब क्या होता है और आपको उसका करना क्या है। वो बता रहे हैं जिस समय आप ने प्यार मुहब्बत की बातें की तब क्या ख़ाक मज़ा हासिल हुआ होगा आजकल फेसबुक और व्हाट्सएप्प सोशल मीडिया के बिना कोई भी काम नहीं मुमकिन है। रात दिन संदेश विडिओ कालिंग और मौज मस्ती किया करते हैं सभी आशिक़। अब वो बात नहीं कि कोई छोड़ जाता है तो पागल बन ढूंढते रहो अगले पल कोई और सामने मिल जाता है। सात जन्म साथ की बात कोई नहीं करता सब जब तक निभती है साथ साथ होते हैं जब नहीं निभती तो अलविदा कहने में संकोच नहीं करते हैं। जान हो कहना ठीक है मगर जान कहने का मतलब जान से हाथ धोना नहीं है। पहली नज़र वाला प्यार अब नहीं होता है सोच समझ कर खूब हिसाब लगाकर चुनते हैं कौन सब से अच्छा विकल्प है। लड़का हो चाहे लड़की हो दोनों के पास और भी लोग रहते हैं किसी एक पर दिल आने की बात नहीं है। साल दो साल बाद भी किसी को लगता है अभी भी बंधन नहीं है विवाह करने से पहले कोई भी बहाना बना सकते हैं। घर वाले नहीं मानते हैं या कोई दूसरी मज़बूरी जता देते हैं। अधिकतर लोग समझदार हैं और उनको भी उस से बेहतर कोई दूसरा मिल जाता है। कभी कभी कोई सोचता है मैं इसको छोड़ दूंगा मगर दूजा उसके छोड़ने से पहले ही छोड़ जाता है। कोई तो कहता है बेवफाई करने से अच्छा है जुदा हो जाना। 
 
           आपके वक़्त कोई विरला आशिक़ महबूबा हुआ करते थे इधर कोई बचा नहीं जिसको कोई भी नहीं मिला हो। ऐसे ऐसे युगल मिलते हैं कि लोग हैरान होते हैं उनको इश्क़ हुआ किस तरह होगा। मगर इक खेल है और हर कोई खिलाड़ी है। वेलेनटाईन डे पर हर साल लोग पुराने को छोड़ नया बना लेते हैं अवसर मिलने की बात है। लेकिन पहले की तरह इश्क़ आसानी से नहीं हासिल होता है , मुहब्बत का भी बहुत बड़ा बाज़ार है और कारोबारी लोग करोड़ों की कमाई करते हैं। टीवी सीरियल और फिल्म वालों ने जो पहले वाला प्यार हुआ करता था उसका कबाड़ा कर दिया है और मुहब्बत में साज़िश से लेकर डर और बाज़ीगर तक क्या क्या नहीं शामिल कर दिया है। चर्चा होती है पहला प्यार आकर्षण होता है जो करीब आये उसी पर दिल फ़िदा हो जाता है। किस को कितनी बार इश्क़ हुआ कई लोग गिनती भी याद नहीं रखते हैं। ये सब सुनते कुछ की धड़कन बढ़ने लगी है तभी सबसे बज़ुर्ग आशिक़ ने चेतावनी देते हुए कहा कि ये सब कोई चाल है और भूले से उस दुनिया में फिर वापस जाने की बात मत सोचना। नये आशिकों का नशा कितने दिन बाकी रहेगा कोई नहीं जनता मगर नफरत की दुनिया की तरफ देखना भी गुनाह है। शायद अगर ये भूले से यहां चले आये हैं तो फरिश्ता देखता है इनको वापस ले जाएगा। हर चमकदार वस्तु सोना नहीं होती है , ज़रा इनकी भी परख होने देते हैं पीतल हैं या खालिस सोना हैं। अब आगे क्या हो सकता है आप भी सोचो तो समझ जाओगे। कई साल हो गये जो भी नये बाशिंदे फरिश्ता लेकर आता है कुछ ही देर में चुपचाप वापस लौट जाते हैं। जिन आशिकों को सोशल मीडिया की लत का रोग लग गया हो वो अपने आशिक़ महबूबा के बगैर जी सकते हैं फेसबुक ट्विटर व्हाट्सएप्प को छोड़ कर नहीं कभी भी नहीं। इसके बिना भी कोई जीना है , मरने का ग़म नहीं होता उनको जितना सोशल मीडिया से बिछुड़ने का दर्द होता है। प्यार की जुदाई सही जा सकती है सोशल साइट्स बिना जीवन सूना क्या मौत से बदतर लगता है। ऊपर वाला चाहे कहीं भेज दे मगर उस जहां में नहीं भेजे जिस में इंटरनेट की सुविधा नहीं हो फेसबुक की दुनिया न हो और व्हाट्सएप्प नहीं चलता हो ।  

अपने होने का सबूत नहीं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

      अपने होने का सबूत नहीं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

    हौसला होता तो कभी सामने आता मेरे , बार बार सपने में आकर अपनी बात कहता है। मैं भी लेखक ठहरा सबकी बात लिखता हूं खुद अपनी भूलकर उसकी भी लिखता रहा कितनी बार। रात फिर आ गया तो मैं पहचान नहीं पाया कितने दिन बाद और कितना बदला बदला सा। कैसे यकीन करता यही भगवान है जो फटेहाल चीथड़े पहने और लहू लुहान बदन पर इतने घाव मगर फिर भी कोई आह नहीं कराहना नहीं बस इक ख़ामोशी लिए हुए। परिचय मांगा तो शिकवा करने लगा तुम आते थे मेरे स्थल तब कभी पूछा था मैंने कौन हो क्यों आते हो। मैंने कहा भाई माफ़ी चाहता हूं भूल गया यादास्त कम हो गई है बता दो बुरा नहीं मानो। मैं हूं दुनिया का बनाने वाला दो जहां का रखवाला सबका मालिक भगवान। मुझे यकीन नहीं आया देख का कहने लगा बदहाल हूं शायद तभी नहीं पहचान रहे हो चलो अपनी पुरानी तस्वीर दिखलाता हूं। और फिर पल भर में भगवान के कितने स्वरूप बदल बदल सामने आता रहा। हर धर्म के हर देवता पयंबर ईश्वर की तरह मगर मुझे फिर भी लगा कि इधर ठग लोग भेस बदलते रहते हैं कैसे यकीन करूं यही असली है। मैंने बताया देखो हमेशा भरोसा करता रहा भगवान है कोई ऊपर वाला मगर लाख कोशिश की मनाने की माना नहीं मुझसे तो जाना छोड़ दिया बाकी सब दिखावे के रिश्ते नातों की तरह। नहीं निभाए जाते झूठे रिश्ते अब और मुझसे। कहने लगा हम कितनी बार बहस करते रहे हैं और बहस करना फज़ूल है चलो तुम खुद बताओ किसे कैसे भगवान मान सकोगे कोई उद्दारहण तो दो। मैंने उसको बताया मुझे मिले हैं जीवन में तमाम लोग जिनसे मेरा कोई नाता रिश्ता संबंध नहीं था फिर भी उन्होंने मुझे वो सब दिया बिना मांगे ही जो तुमसे मांगने पर भी मिलता नहीं किसी को भी। और उन कुछ लोगों की वास्तविक कहानी उसको बताई मैंने।

       बात 1974 की है 44 साल बाद भी याद है। डॉक्टर बनकर अपनी क्लिनिक शुरू की उस शहर में मगर दूर के नाते पहचान वाले दो तीन लोग महीना भर भी नहीं लगा दूर होते। अकेला इक घर किराये पर लिया मगर नाम को चार बर्तन लाया था घर से और खाना बनाना आता नहीं था। तब उस शहर में एक ढाबा था जो इतनी दूर था कि खाना खाने जाओ तो वापस आते आते भूख लगने लगती। ऊपर से अजनबी लोग कोई बात करने को नहीं। कुछ दिन बेहद कठिनाई से बिताए जो लिखना संभव नहीं है। मगर साथ ही मकान मालिक का घर था और मकाम मालकिन ने इक बज़ुर्ग महिला को रखवा दिया जो घर की सफाई कपड़े धोना और खाना बनाकर रख जाना सब काम करती नाम को ही वेतन था 35 रूपये महीना। मगर मैं क्लिनिक चला जाता नाश्ता कर और वो माताजी बाकी सब काम कर चाबी मकान मालकिन को देकर चली जाती। कभी उनके आने से पहले मैं क्लिनिक चला गया होता और ध्यान नहीं होता कि घर की चाबी मकान मालकिन को देकर जाऊं तब वो माताजी छत से ही मकाम मालिक के घर से मेरे घर आती और सब काम करती चली जाती थी। इतना ही नहीं वो इतना ध्यान रखती थी कि मुझे जितना खाना है उतना बनाती और अक्सर रसोई का सामान भी खत्म होने पर गली की दुकान से उधार ले आती ताकि मैं भूखा नहीं रहूं। शायद अपनी मां की तरह से ही ध्यान रखा उन्होंने मेरा कई महीने तक। उस शहर की कड़वी यादें बहुत हैं मगर एक उनकी याद है जो आज भी मन भर आता है। मगर अफ़सोस है कि फिर कभी उस शहर जाना नहीं हुआ और मिल नहीं सका।

       बहुत लोग हैं जिन्होंने मुझे या फिर मुझ जैसे अन्य कितनों के जीवन को संवारने को अपना योगदान दिया। हो सकता है आपको पहली नज़र में ये छोटी सी बात लगे मगर मैं सोचता हूं अगर उन्होंने जो किया वो नहीं करते तो मैं और मुझ जैसे तमाम लोग शायद बहुत चीज़ों से वंचित भी रह सकते थे। आज शुरआत करता हूं गांव के उन मास्टरजी की याद से। मेरा गांव शहर से 15 किलोमीटर दूर था और सड़क से पांच किलोमीटर पैदल चलना होता था। तब कोई अध्यापक गांव आकर सरकारी स्कूल में अध्यापक बन कर शिक्षा देने को मुश्किल से ही तैयार होता था और जिस को सरकार भेजती वो भी गांव में कच्चे मकान में रहने की जगह शहर में रहना चाहते थे। मगर उन्होंने एक अकेले ही पांचवी तक की क्लास तक सभी को शिक्षा देने का कार्य शुरू किया जब तक बाकी अध्यापक नहीं आये। इतना ही नहीं स्कूल के समय के बाद घर पर भी बच्चों को पढ़ाया करते थे ताकि अच्छे नतीजे मिल सकें। उन दिनों कोई ट्यूशन फीस की बात नहीं होती थी। आज सोचता हूं कि हम जितने लोग उनसे पढ़कर डॉक्टर इंजीनीर या बैंक अधिकारी अथवा अन्य बड़े पद पर पहुंचे हैं उनके योगदान को शायद कभी याद भी नहीं किया होगा जबकि हमें हमेशा उनका आभारी होना चाहिए।

     डाकिया था गांव का सबको जनता था पहचानता भी था और सब भरोसा भी करते थे उस पर। चिट्ठियां बांटना लिख भी देना पढ़ कर सुनाना और बदले में हाथ जोड़ नमस्कार करना कुछ भी नहीं लेना न मांगना। घर का सदस्य लगता था जो कभी कभी खुद कह देता माता जी थक गया चाय पीनी है और चाय मिल जाती थी। चौकीदार था एक जो रात भर जागते रहो की आवाज़ लगाता और लोग चैन से सोते थे। उसको हर दिन थोड़ा आटा  मिलता था घर घर जाता कोई काम कहते तो कर देता और सबकी खबर देता लेता भी जैसे कोई हमदर्द हो। उसकी पत्नी हर किसी के बुलाने पर चली आती और सुख दुःख में घर पर महमान आये हों या कोई बीमार हो सब काम करने में सहयोग देती थी। एक तिरखान था जो किसानों ज़मीन वालों के हल कस्सी आदि बनाता था बदले में अनाज मिलता था मगर वो भला आदमी उन बच्चों को भी गिल्ली डंडा खिलौने बना कर देता जिनके घर से उसे कुछ भी मिलता नहीं था। ऐसे लोग हर जगह मिलते रहे जो खुद को महान नहीं समझते थे मगर वास्तव में अच्छे थे और अच्छाई ज़िंदा है इसका सबूत थे। उनकी तरह तेरे होने का कोई सबूत मुझे कभी दिखाई नहीं दिया। सपना खत्म नहीं हुआ मगर नींद खुल गई थी।

         सुबह सुबह बाहर से आवाज़ आ रही है जागते ही धन्यवाद करो भगवान का कि अभी भी ज़िंदा हो। मुझे इसका मतलब नहीं समझ आया तो क्या ये अनहोनी है। क्या मुझे ज़िंदा होना नहीं चाहिए था वास्तव में हालात कुछ जीने लायक हैं तो नहीं। क्यों ज़िंदा हैं सोचते हैं तो जवाब यही मिलता है क्योंकि मरे नहीं अभी। अगर यही जीना है तो जीकर क्या होगा। हर सुबह अपने वजूद को ढूंढना हर बार निराशा को भुलाकर आशा जगाने की नई कोशिश करना। किसी शहर की पहचान थी कि उस के हर चौराहे पर लिखा रहता था मुस्कुराइए कि आप इस शहर में हैं। लोग मिलते हैं तो लगता है बेवजह मुस्कुराने की कोशिश करते हैं। कोई वजह हंसने की रोने की जश्न मनाने की होनी चाहिए अकारण कुछ करना तो पागलों की सी बात है। मगर अब सरकार करोड़ों रूपये इसी पर खर्च करती है फील गुड फैक्टर इसी कहते हैं गंदगी के ढेर पर स्वच्छ भारत अभियान का विज्ञापन। सदिओं से यही परंपरा चली आई है सीता रुपी जनता सोने का हिरण मांगती है पति सरकार की तरह उसको जंगल में भाई पर सुरक्षा करने का कार्य सौंप हिरण तलाश करने चले जाते हैं सत्ता का। छोटा भाई  सीता माता को अकेली जंगल में छोड़ भाई के पीछे चले जाते हैं मगर सरकारी नियम कानून की तरह इक रेखा बना जाते हैं कि उसमें कैद रहते कोई डर नहीं है मगर जनता रुपी सीता उस रेखा से बाहर निकलती है और रावण उसको उठा ले जाता है। आज भी अपहरण करने वाले रेखा से बाहर निकलने की टोह रखते हैं। अपराधी अपराध करने से पहले विचार करते हैं रेखा को हमने नहीं लांघना है। नेता जी यही ब्यान दे रहे हैं कि अधिकतर बलात्कार बलात्कार नहीं होते हैं आज सीता जी होती तो दोष उन पर लगता रेखा से बाहर आई किसलिए। साधु भेस में रावण हैं क्या अभी समझ नहीं आया और सरकार को ऐसे रावणों की कितनी चिंता है वोट पाने को उनकी शरण जाते हैं। मगर सत्ता का आत्मविश्वास फिर भी कायम है जो दावा करते हैं हम लाख बुरे सही और राज्य को कितना बदहाल किया हो तब भी हर गली हर सड़क पर इश्तिहार बताते हैं कि जो भी वास्तविकता है वो सच नहीं है और हमारा झूठ ही सच्चाई है।

     धर्म की बात और भगवान की राजनीति करने वालों के युग में भगवान की दुर्दशा सपने में देख कर मन घबरा रहा है। भगवान की सहायता ऐसे में कौन कर सकता है। भगवान का कोई बस सरकार पर नहीं है खुद भगवान इक कठपुतली बन चुके हैं और कठपुतली करे भी तो क्या नाचना तो पड़ेगा धागे किसी और के हाथ में जो हैं। पिछली सरकार कहते थे कोई कठपुतली बन कर चला रहा है अब मामला और अजीब है भगवान भी कठपुतली बन गये हैं और बेबस हैं। मगर उनके पर कोई सबूत भी नहीं आधार कार्ड की तरह।


नवंबर 18, 2018

क़यामत आ रही है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

         क़यामत आ रही है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

      आखिर उसको आना ही पड़ा , साल पहले देश में चुनाव से पहले दहशत का माहौल बना हुआ था टीवी मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प सभी पर लगता था 2019 चुनाव नहीं कोई क़यामत आने वाली है। और उस क़यामत से बचने का उपाय बस वही केवल एक वही है जिसके लिए सब मुमकिन है। मगर अब साल बाद वास्तव में क़यामत सामने है तो जो कुछ भी कर सकता है समझते थे वो कुछ भी करना क्या समझ भी नहीं पा रहा है। कयामत आने वाली है जैसे ऐसा शोर है जैसे देश में पहले कभी चुनाव ही नहीं हुए हों। मगर ये शोर मचा वो रहे हैं जिनके लब सिले हुए हैं आंखों पर स्वार्थ की काली पट्टी बंधी हुई है। कहते हैं उनके पास कभी सच बोलने वाली ज़ुबान भी हुआ करती थी और समाज की बात समझने समझाने को ज़मीर नाम का भी कुछ हुआ करता था। विज्ञापन और कारोबार व ताकत हासिल करने को ये दोनों चीज़ें गिरवी रख दी सरकार नेताओं उद्योगपतियों धर्म का धंधा करने वालों और मनोरंजन के नाम पर देश की जनता और दर्शकों को गुमराह करने वालों की टकसालों पर। अब उन सभी का झूठ ऊंचे दाम पर बेचते हैं और मालामाल हो रहे हैं चोर भी और रखवाले भी। चौकीदार शब्द का उपयोग नहीं किया क्योंकि इधर उसका पेटेंट किसी के नाम किया जा चुका है जो वास्तव में चौकीदार है नहीं बनना चाहता भी नहीं था मगर कहलाना चाहता था। अख़बार कभी जागरूकता लाने और देश समाज को आईना दिखाने को निकाला करते थे और पत्रकार खुद को चौकीदार ही मानते थे और जो चोरी घोटाला करता उसका पता लगाना और देश की जनता को सूचना देना अपना फ़र्ज़ समझते थे। आजकल ये खुद को सबसे ऊपर समझते हैं और अपने लिए कोई बंधन कोई नियम नहीं मानते है। इनको भरोसा है या वहम है कि यही सब जानते हैं और कुछ भी कर सकते हैं। रात को दिन दिन को रात बना सकते हैं इनका दावा है। कभी नियम था कि किसी मकसद या स्वार्थ के लिए खबर छापना या छुपाना पीत पत्रकारिता होता है और इक गुनाह है। मगर आज फेक न्यूज़ या इस तरह से तमाम बहस कहानियां बनाकर झूठ को सच बताना इन्हें अनुचित नहीं लगता है। पीलिया रोगी बन चुके हैं और सही गलत की बात छोड़ इक अंधी दौड़ में भाग रहे हैं। आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास।

           लोग हर किसी को जो कोई कहता है नाम दे देते हैं मैं शरीफ आदमी हूं जो कहता है उसको शराफत का तमगा दे देते हैं जबकि शरीफ समझा जाना अर्थात बिना अपराध गुनाह मानने वाला और सज़ा कबूल करने वाला आदमी। ठीक जैसे घर में अधिकतर पति शरीफ होते हैं मगर बाहर निकलते ही शराफत छोड़ बदमाशी करना चाहते हैं। मगर बदमाशी करना सब के बस की बात नहीं होती है इसलिए ज़्यादातर शरीफ चाहकर भी शराफत का लबादा उतार नहीं पाते हैं। अब बात चुनाव की कयामत की। ये अफवाह जाने कब से उड़ चुकी है कि अख़बार टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर ज्ञान बघारने वाले बेकार लोग और कुछ राजनीतिक दलों के भाड़े पर लगाए लोग जिसे चाहे चुनाव जितवा सकते हैं। हर दल की नज़र इसी पर है इनको खुश करने से जीत हासिल हो जाएगी मानते हैं। कहने को सभी कहते हैं देश की जनता समझदार है मगर समझते हैं जनता नासमझ बच्चा है जो उनकी समझाई किताब पढ़कर उस पर अमल करेगा। वास्तविकता सब जानते हैं कि हमेशा देश की जनता ने समझदारी का परिचय दिया है। इनको लगता है जो हम लिखेंगे जो भी हम दिखाएंगे लोग उसी को सच मानेंगे। लोग यही मानेंगे कि देश की वास्तविक समस्याएं वो हैं जो मीडिया बताता है और जो खुद जनता की समस्याएं हैं वो कोई समस्या हैं ही नहीं। और लोग अन्याय अत्याचार भेदभाव  शिक्षा रोज़गार स्वास्थ्य की चिंता छोड़ धर्म और मूर्तियों तथा राजनीतिक दलों की सत्ता की चाहत को साम दाम दंड भेद भाव की अनीति को उचित समझ अपना मत देंगे। सभी दल सब नेता टीवी चैनल अख़बार चुनाव को ऐसे देख रहे हैं जैसे कोई कयामत आने वाली है। इन को और कोई चिंता ही नहीं है , कुवें के मेंढक को लगता है उसका समंदर विशाल है। जो लोग आज़ादी चाहिए रौशनी चाहिए का शोर मचाते हैं कैफ़ी आज़मी की कविता की तरह उनको केवल सत्ता की चाहत है और चुनाव संपन्न होते ही वापस अंधे कुंवे में कूद जाते हैं फिर से नारे लगाने को।
 
                  इस देश की जनता की आदत आज भी सदियों पुरानी हैं चुप रहती है सब समझती है मगर बोलती नहीं है मगर सही समय पर अच्छे अच्छों को असली औकात दिखला देती है। किताबी ज्ञान वालों को ये समझना आसान नहीं है कि बड़े बूढ़े और तजुर्बे से बहुत सबक लोग सीखते हैं और जीवन के अनुभव से बढ़कर कोई स्कूल कोई कॉलेज कोई विश्वविद्यालय ज्ञान नहीं दे सकता है। बंद कमरों में बैठ कर देश को समझना संभव नहीं है। शायद कोई ये विचार नहीं करता है कि ये कितनी बड़ी मूर्खता है कि पहले इसकी चर्चा करना कि कौन किसे वोट देगा कौन जीतेगा कौन हारेगा और उसके बाद क्यों कोई जीता कोई हारा की बात की चर्चा करना। कभी पढ़ना यही काम सब से अधिक मूर्खता वाला बताया गया है तमाम महान ऐसे लोगों द्वारा जिन्होंने इसकी चिंता नहीं की और वास्तविक कार्य किया। गांधी भगत सिंह सुभाष जैसे लोग अगर इन बातों की चर्चा में उलझे रहते या नानक बुद्ध केवल यही करते अथवा अब्दुल कलाम ऐसी बहस में लगे रहते तो कुछ भी हुआ नहीं होता। विडंबना की बात है गीता की बात करने वाले कभी समझ नहीं पाए कि जंग लड़ क्यों रहे हैं और जीत हार से अधिक महत्व किस बात का है। समझदार लोग खामोश रहते हैं और दो कौड़ी के लोग शोर मचाकर अपनी बोली लगवा रहे होते हैं। देश की अधिकांश जनता खामोश रहती है और आज भी चुप है समय पर निर्णय देने को मगर ये राजनेता और मीडिया वाले कुछ तथाकथित जानकर विशेषज्ञ कहलाने वाले लोगों के साथ शोर मचाए हुए हैं कि कयामत आने वाली है। हम शरीफ लोगों की शराफत को कमज़ोरी या नासमझी नहीं समझो जिस दिन ये दबे कुचले लोग बोलने लगे आप सभी खुद को सब जानने वाले समझने वाले दंग रह जाओगे मगर घबराना नहीं कोई आफत कोई कयामत नहीं आएगी।

               शायद आज भी बहुत लोगों को याद होगा कि देश में चुनाव कभी नफरत और बदले की भावना से नहीं विचारों की विभिन्नता को लेकर लड़े जाते थे और जनता को इक पर्व की तरह उत्साह होता था। राजनीतिक दलों की सत्ता की भूख के कारण अपराधी और धनवान और सरकार का दुरूपयोग करने वाले लोग देश को बर्बाद करने में सफल होते होते सरकार पर वर्चस्व स्थपित कर सके हैं। आज कोई भी दल देश और समाज की भलाई नहीं चाहता ये सब उस गंदे पानी के तालाब की तरह हैं जिस में जितना साफ पानी बाहर से मिलाओ उस को भी गंदा कर देते हैं। सवाल इस गंदी राजनीति के पूरे पानी को बदलने का है। शायद कुछ कमी है जो हम किसी न किसी को मसीहा समझ उसकी बंदगी करने लगते हैं जो वास्तव में गुलामी की निशानी है। भारत हो या कोई भी देश कोई भी राजनेता देवता नहीं होता है और जनता जो उनको चुनती है उसे सर झुकाने की आदत छोड़ अपने अधिकार मांगने  और उनको कर्तव्य निभाने की बात करनी होगी। जो भी नेता कहता हो उसने आपको कुछ भी दिया है उसको कहना होगा कि आपने दिया नहीं है हमारा है हमें मिलना चाहिए था। किसी भी अधिकारी से बात करते हुए सर जी कहना इस देश के पत्रकार और बुद्धीजीवी ही किया करते है अन्य किसी देश में नहीं होता है ऐसा। वास्तविक मालिक देश की जनता है और शासन करने वालों की अकर्मण्यता का सबूत है कि खुद सुख सुविधा से रहते हैं मगर जनता को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवा सके आज तक। दो शेर आखिर में अपनी ग़ज़ल के अलग अलग। 

बोलने जब लगे पामाल लोग , 

कुछ नहीं कर सके वाचाल लोग। 

अनमोल रख कर नाम खुद बिकने चले बाज़ार में ,

देखो हमारे दौर की कैसी कहावत बन गई।


नवंबर 15, 2018

कुछ भी समझ नहीं आता ( उलझन मन की ) डॉ लोक सेतिया

     कुछ भी समझ नहीं आता ( उलझन मन की ) डॉ लोक सेतिया 

    जब किसी से कोई गिला रखना , सामने अपने आईना रखना। शुरुआत अपने आप से करता हूं। लागा चुनरी पे दाग़ छुपाऊं कैसे , घर जाऊं कैसे। यकीन करें तो ये सत्ययुग ही है सभी भली भली बातें करने हैं ज्ञान की बातें करते हैं कितने सुंदर लगते हैं लिबास भी सज धज भी और आपस में बातें भी अच्छी अच्छी। मगर पल भर में भली बातें मुहज़्ज़ब लहज़े का रंग पहली बारिश में उतर जाते हैं। अब देखो अपनी बात कहने को किस किस की ग़ज़ल के शेर बिना पूछे उठा लिए हैं मगर मैं सच लिखता हूं ये भी दावा है जबकि सच लिखता उतना जितना साहूलियत है सुविधाजनक है। कल किसी ने कहा आप तो बहुत अच्छे व्यक्ति हैं मैं आपका काम तो बिना शुल्क लिए ही कर सकता हूं। सच सुन कर बेचैनी महसूस हुई क्या मैं भला आदमी हूं , अपने आप पर हंसी आई मुझे। लोग परेशान हैं मुझसे बचते हैं घबराते हैं जाने किस बारे क्या लिख देगा ये पागल आदमी। सोचते हैं मन ही मन खुद क्या दूध का धुला है। सच है ये हम सभी लोग ऐसे ही हैं जो होते हैं सामने दिखाई नहीं देता और जो समझते हैं वास्तव में बन पाते नहीं हैं। सोचता हूं अगर वास्तव में भगवान है और इक दिन जाना है किसी और दुनिया में और जाकर सामना करना है बाबुल का तो कैसे नज़रें मिला सकूंगा। अपनी बात लिख दी है अब बाकी दुनिया की कहनी है मुझे कुछ भी समझ नहीं आता ये दुनिया कैसी है। चलो सामने है आपको दिखलाता हूं। 
 
               सच के झंडाबरदार होने का दम भरने वाले कल खामोश नज़र आये और हर ऐरेगैरे के जन्म दिन की बात पर विस्तार से चर्चा करने वाले बालदिवस पर नेहरू जी को भूले भी नहीं मगर याद करने से बचते रहे। मौजूदा निज़ाम नहीं चाहता उसका कोई नाम भी लब पर लाये , चार साल पहले तक देश के दिलों की धड़कन बनकर राजनीति में सबसे लोकप्रिय होने वाले नेता को आज नायक से खलनायक घोषित करने की कोशिश कर खुद नया इतिहास रचने की जगह पुराना इतिहास मिटाना और बदलना चाहते हैं। क्या आपको आज के काल में जीना है और भविष्य की आधारशिला रखनी है या कुछ नहीं करना केवल पुराने इतिहास को दोहराना है गड़े हुए मुर्दे उखाड़ने की ओछी राजनीति करनी है। किसी को छोटा साबित करने से आप बड़े नहीं बन सकते हैं। जिसे आप समझ नहीं पाये जिस की सोच तक आपकी समझ जाती नहीं उस से मुकाबला करोगे उसके मर जाने के पचास साल बाद। भूत से डरते हैं लोग और इनको आज भी नेहरू जी भूत बनकर सताते हैं मगर गांधी जी का नाम और गोडसे की आरती एक साथ इनको भयमुक्त नहीं कर पाती है। राजनीति को इतना निचले स्तर तक ले आना देश को किधर ले जाएगा। मगर इनको ख़ुदपरस्ती की आदत हो गई है अपनी सूरत को सजाने में लगे हैं असली शक्ल कोई देखे तो कैसे।

                            बाबा जी हैं कहते हैं योग से सभी को निरोग कर दिया है कोई विश्व स्वास्थ्य संगठन से पता करे हुआ क्या है रोगी कम तो नहीं हुए अभी। कुछ बातें शोर बहुत होता है उनका मगर असलियत कोई नहीं समझता। विज्ञान अनुसंधान करती है तो सौ लोगों को कोई चीज़ अपनाने को और सौ को उसके बिना रहने को सामने रखते हैं और साल दो साल बाद देखते हैं उन दोनों में कितना अंतर है। और अगर अनुसंधान में कोई फर्क नहीं तो उसे उस काम के लिए उपयोगी नहीं मानते हैं। मगर जब बिना कोई अनुसंधान आपको झूठे दावे करने की सुविधा है इस देश में कोई जांच नहीं करने वाला आपके दावे की सच्चाई तो आप उल्लू बनाकर जो मर्ज़ी बेच सकते हैं। रोगी नहीं होने की बात भी और बिना डॉक्टर बने हर रोग की दवा बताने की बात भी एक साथ करना इतने कम समय में देखकर लगता है गीता के भगवान कृष्ण की तरह विराट स्वरूप होगा हज़ारों हाथ और मुंह खोलते ही सभी लोग अपने भीतर समाते हुए इक डरावनी सी मूरत। मगर इनकी हर वस्तु असली भी है और इनका मुनाफा भी समाज कल्याण पर खर्च किया जाता है। भाई पहले कमाई फिर भलाई में मिठाई खाने की बात समझ नहीं आई। समाज कल्याण करना है तो मुनाफा लेते ही क्यों हैं। ये धंधा सबको आता तो लोग गरीब रहते ही नहीं , मगर फिल्म वाले समझ नहीं पाए कि अमिताभ बच्चन और आमिर खान के रहते ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान कमाई क्यों नहीं कर पाई। अमिताभ जी वही हैं जो आपको खाने का स्वाद मसाले से होता है मां सबकी एक है का उपदेश देते हैं और चिंता मुक्त होने को तेल मालिश से शहद बेचने और आपके हाथ से आपका फोन लेकर आपकी डाउनलोड की एप्प्स को हटा इधर उधर क्यों जाते हैं जब उनकी बताई ऐप्प है। जनाब आप इधर उधर जिधर मन चाहे चले जाते हो वहीं टिके रहिये अभिनय करिये कितना पैसा चाहिए इस महानयक सदी के तथाकथित भगवान को। चलो छोड़ देते हैं आखिर तो इंसान ही हैं लोभ मोह अधिक की चाहत मिटती नहीं साधु संतों की भी।

       किस किस की बात की जाये , समाजसेवा वाले या न्याय वाले या कारोबार की लूट वाले सब हैं कुछ नज़र आते कुछ और हैं। मगर सरकार की और भगवान की बात किये बिना बात खत्म नहीं की जा सकती है। सरकार का काम क्या होता है उस चुनी हुई सरकार का जिसे जनता ने बनाया हो अपनी बदहाली का अंत करने का अच्छे दिन लाने का वादा करने पर। आप उसे कहोगे जाओ भगवान की शरण में अपनी समस्याओं को लेकर। उसके लिए पंडित मौलवी ज्ञानी साधु पहले से हैं आपको अपना काम करना था मौज मनाने को नहीं मिली थी सत्ता। अपने तो हद ही कर दी खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना , ये कोई किशोर कुमार की कॉमेडी है गरीबों से भद्दा मज़ाक किया है। नाम बदलने से सीरत नहीं बदलती और आपने देश की बुनियाद को उखाड़ने की सोच बना ली है जिस इमारत पर आज खुद को गुंबद की तरह देखते हो उसकी आधारशिला वो लोग हैं जिनकी आप उपेक्षा और अनादर करना चाहते हो। उन्होंने किया या नहीं किया कुछ भी इसका हिसाब लोग समझते हैं आपको अपना हिसाब देना है किया क्या है। झूठ का व्यौपार और खुद अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना ये करने लायक बात तो नहीं है। जिनको अपने खराब बताया उन्होंने कभी औरों को अपने आधीन गुलाम बनाने की सोच नहीं रखी मगर आपने जो आपको नहीं भाता उसे ध्वस्त करने का काम किया है। तोड़ना आसान है निर्माण करना कठिन है अपने जोड़ने की नहीं तोड़ने की बात की है। नफरत की गंदी राजनीति से कभी देश का भला नहीं हो सकता है।

              आखिर में भगवान की बात वो भी बिना किसी डर के साफ साफ। भगवान क्या यही धर्म है कि तेरे लिए मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे शानदार महल और सोना चांदी हीरे जवाहारात के भंडार जमा हों जबकि तेरे ही बंदे भूखे बेघर और बदहाल हों। ये किन लोगों का कारोबार है जो पढ़ाते हैं संचय मत करो दीन दुखियों की सहायता करो मगर आचरण में ऐसा नहीं करते हैं। जिनको खुद धर्म का पालन नहीं करना आता वही हम लोगों को धर्म की बात समझाते हैं। जितनी नफरत धर्म के नाम पर दिखाई देती है उस से लगता है धर्म की बात कहीं चालबाज़ लोगों का कोई जाल तो नहीं जो खुद भगवान से नहीं डरते बाकी लोगों को उसका भय दिखाकर अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं। सोशल मीडिया पर लगता है सब लोग धार्मिक हैं देवता समान हैं मगर वही लोग वास्तविक दुनिया में किसी राक्षस से कम नहीं लगते हैं। भगवान का नाम लेने से क्या होगा जब हर किसी से छल कपट धोखा और फरेब पल पल हर दिन करते हैं। जो दिखाना चाहते हैं सत्ययुग जैसा है पर जो वास्तव में दिखाई देता है कलयुग से भी खराब है। कुछ भी समझ नहीं आता कुछ भी नहीं। 

 

नवंबर 13, 2018

सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

  सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

   सोचने की आज़ादी भी है और सोचने से जाता भी कुछ नहीं है। आप जो सोच रहे मुझे उस की बात नहीं करनी है जो मैं सोच रहा हूं केवल उसी की बात होगी। सोचना बहुत ज़रूरी है दादाजी कहते थे पहले सोचो फिर उसको तोलो तभी बात को बोलो। बॉबी फिल्म का गीत सोचो कभी ऐसा हो क्या हो आज भी आशिक़ सोचते हैं काश ऐसा हो। बस हम दोनों अकेले बंद कमरे में रोटी पानी नहीं बस मुहब्बत की बातें मगर अब संभलना मीटू का खतरा है। यहां बात जन्म भुमि की है अदालत को निर्णय दे देना चाहिए जिसकी जो भी जन्म भुमि है उस पर उसका अधिकार है और सदियों तक रहेगा। एक बार फिर से सभी को अपने आधार कार्ड पर जन्म स्थान भी शामिल करवाना होगा ताकि जब भी कोई चाहे अपनी जन्म भुमि पर अपना हक हासिल कर सके। कानून लाना है तो सबके लिए लागू करना होगा। कितने लोग हैं जिनके पास घर नहीं है उनको वो जगह मिल जाएगी जिस जगह जन्म लिया था। बेशक मकान किराये का हो जन्म लेने वाला हिस्सेदार बन जाएगा उस घर में पैदा होते ही। अस्पताल में जन्म हुआ तो सभी वहां जन्म लेने वाले शेयर होल्डर की हैसियत वाले बन जाएंगे और अस्पताल से निशुल्क ईलाज ही नहीं कमाई का डिवीडंड भी पाएंगे। सरकारी घर में जन्म लेने वाले बच्चे खुद ब खुद सरकारी नौकरी पाएंगे। लावारिस बच्चे फुटपाथ पर हक जमाएंगे और झूमेंगे गाएंगे मौज मनाएंगे। 
 
           किसका जन्म कब कहां हुआ भगवान की मर्ज़ी है और भगवान से जो जगह मिली इंसान छीन नहीं सकता न ही जन्म भुमि की कोई कीमत रखी जा सकती है। मेरा जन्म जिस शहर में हुआ था कुछ साल पहले उस नगर जाना हुआ था और उस गली को जाकर देखा भी था। अब एक बार आधार कार्ड में सबूत सहित उस जगह का नक्शा साथ होगा तो जाकर फिर से पांव रखूंगा। अदालती आदेश साथ लेकर जाना है कोई दंगा फसाद नहीं प्यार से सद्भावना से आपसदारी से। कई देश बाहर से आये विदेशी नागरिक की अपने देश में जन्म लेने वाली संतान को नागरिकता देते हैं और हम भी देश में जन्म लेने से देश की नागरिकता पाने के हकदार बन जाते हैं। ऐसे में जन्म लेने वाली जगह पर मालिकाना हक संविधान को भी मंज़ूर होना लाज़िम है। अगर अभी तक आपको जानकारी नहीं है तो पता कर लीजिये अपने जन्म स्थान के बारे में ये आपके काम कभी भी आ सकता है। चाहे ऐसा कुछ भी होना संभव नहीं है आपको लगता है तब भी सोचने में हर्ज़ ही क्या है। सोचना ऐसा कार्य है जिस में कोई निवेश करना होता है और सोच सकते हैं जो भी आपको अच्छा लगता है। दुनिया जाए भाड़ में आप सोचिए जो सोचना चाहते हैं। स्वर्ग का आनंद मिलता है। 

 

नवंबर 12, 2018

इक्कीसवीं सदी का संविधान ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

   इक्कीसवीं सदी का संविधान ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

      आखिर देश की सरकार को भी समझ आ ही गया है कि भगवान का ही भरोसा है। हम तो पहले से सोचते रहे हैं कि ये देश चल कैसे रहा है। जिस देश के नेता अधिकारी अपना कर्तव्य नहीं निभाते हर विभाग अपना काम छोड़ बाकी सब काम करता है पुलिस अस्पताल विद्यालय सभी अन्याय बढ़ाने अपराध करवाने रोगी को उपचार देने से पहले खुद अपनी कमाई की चिंता करने शिक्षा का कारोबार करने लगे हों उस देश का मालिक भगवान ही है। इसलिए सरकार ने नई नीतिगत योजना बनाई है मंदिर और मूर्तियां बनाने की। शिक्षा स्वास्थ्य न्याय और समानता से कहीं अधिक महत्व धर्म पूजा पाठ और मंदिर मूर्तियां का है। मंदिर में भगवान से ज्ञान शिक्षा स्वास्थ्य और इंसाफ जो मर्ज़ी मांग सकते हैं , सब को सभी कुछ भगवान ही दे सकता है। भगवान सब से धनवान है इस में किसी को संदेह नहीं है। सभी भगवान सब देवी देवता अकूत धन संम्पति हीरे जवाहारात सोना चांदी जमा करे हुए हैं। रब माना जाता है उनको भी देता है जो उसे नहीं मानते हैं शायद उन्हीं को ज़्यादा देता है। जो भगवान को मानते हैं वो मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरूद्वारे जाते हैं रोज़ सुबह शाम और घंटों राम नाम या गुरुबाणी या कुरान अथवा बाइबल पढ़ने पर खर्च करते हैं मगर जो इसकी चिंता नहीं करते वो जब मनोकामना पूरी हो जाती है तब चढ़ावा भेंट करते हैं। इनका भरोसा पहले काम फिर दाम की बात का है। नेता जी भी चुनाव जीतने के बाद करोड़ों का चढ़ावा सरकारी धन से चढ़ाते रहे हैं। समझदारी इसे कहते हैं हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चौखा हो , कमाल है। भगवान कैसे खुश नहीं होंगे इस से पहले ऐसा भक्त कोई सत्ताधारी नज़र आया ही नहीं होगा। देश का विकास भविष्य में संविधान के सिद्धांत के अनुसार नहीं साधु संतों और बाबाओं से निर्देश लेकर किया जाएगा। विभागों के नाम बदल कर देवी देवताओं के नाम से बुलाया जाएगा। वित मंत्रालय को देवी लक्ष्मी , ग्रह मंत्रालय को संकट मोचन , स्वास्थ्य मंत्रालय को धन्वन्तरी देव नाम की तरह करने से सब अपने आप ठीक हो जाएगा। और नहीं भी हुआ तो लोग सरकार की आलोचना नहीं करेंगे भगवान की मर्ज़ी मान खामोश रहेंगे। आज तक किसी ने भगवान को लेकर कोई बात कहने का साहस नहीं किया और जो करे उसको नास्तिक कहकर लताड़ासच नहीं बोलना उन्होंने सीखा है उनका धर्म कोई और होगा अपना धर्म सत्य और त्याग की शिक्षा देता है। सत्ता पाने को धर्म का उपयोग करना उनका धर्म उचित बताता है अपना धर्म राज त्याग का वचन निभाने की बात करता है। अदालत की बात कब मानते हो जो विपक्षी दल के नेताओं को ज़मानत मिली हुई है की बात हंसते हुए कहते हैं उपहास उड़ाते हैं जबकि आपके सरकार के मंत्री गंभीर अपराधों में ज़मानत पर हैं विपक्षी दल के नेताओं का मुकदमा तो जायदाद का है। आपके दल के इक तिहाई सांसद सौ से अधिक लोग ऐसे हैं जो आपराधिक मामलों के आरोपी हैं। छाज तो बोले छलनी भी बोले जिस में हज़ार छेद हैं। औरों के पाप पाप और आपके पाप देश सेवा और धर्म कर्म और पुण्य। आपके धर्म से डर लगता है हमारा धर्म हिंसा नहीं शांति की बात करता है मानवता की बात करता है। जो धर्म लोभ लालच सत्ता की चाहत और अहंकार का पाठ पढ़ाता है उस धर्म की इस देश को आवश्यकता नहीं है। कोई भी धर्म देश से बढ़कर नहीं हो सकता है और जो लोग देश के कानून को नहीं मानते संविधान की भावना को नहीं समझते उनका धर्म अधर्म हो सकता है धर्म नहीं। जाता है कि भगवान के लिए ऐसी बात कहते हो तभी तो बदहाल हो। अब जब चुनाव होंगे तब हर दल वाले वादे करेंगे आपके शहर में किस किस देवी देवता का कितना भव्य मंदिर बनाया जाएगा। कितनी मूर्तियां किस किस की धातु की पत्थर की या आधुनिक ढंग से रंग बिरंगी रौशनियों से बनाई जाएंगी। विज्ञान की साहित्य की अर्थशास्त्र की किसी भी विषय की पढ़ाई ज़रूरी नहीं होगी , बस भगवान को लेकर चर्चा खोज पर ध्यान देना होगा।

         गली गली नगर नगर धर्म के आयोजन होते हैं कितने धर्म स्थल हैं कितने लोग धार्मिक भावना से कहां कहां नहीं जाते और क्या क्या धार्मिक आयोजन नहीं होते। मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरिजाघर कोई कम नहीं हैं न ही उनमें जाने वाले लोगों की संख्या कोई कम ही है। फिर भी सरकार को लगता है धर्म को लेकर धर्म मानने वालों से अधिक सरकार को चिंता करनी है और जब भी चुनाव करीब हो जनता को उलझाना है ऐसी बातों में ताकि गरीबी भूख बेरोज़गारी और बुनियादी सुविधाओं की बात नहीं हो। सरकारी दफ्तर में सुबह पहुंच कर काम शुरू करने से पहले धर्म की किताब पढ़ने और पूजा अर्चना करने का नियम हो और शाम को भी आरती के साथ दफ्तर बंद होने चाहिएं। अस्पताल में उपचार से पहले नाम जपने को कहा जाये और विद्यालय में आधा समय वेद पुराण आदि अपने अपने धर्म की किताब का पाठ किया जाये। मगर कहीं भी किसी को भी धर्म की बताई बातों का पालन करने की बात कदापि नहीं समझाई जाये। वास्तविक धर्म दीन दुखियों की सेवा करना और सभी को इक समान इंसान समझना किसी से बैर भाव नहीं रखना को भुलाना होगा और धर्म का बदला हुआ रूप लाना होगा। जनता को बेकार की बातों में बरगलाना होगा और धर्म को चुनावी मुद्दा बनाना होगा। सूखा मचाने वाली बरसात को लेकर आग लगाना होगा देश को वापस लौटाना होगा।

         सच नहीं बोलना उन्होंने सीखा है उनका धर्म कोई और होगा अपना धर्म सत्य और त्याग की शिक्षा देता है। सत्ता पाने को धर्म का उपयोग करना उनका धर्म उचित बताता है अपना धर्म राज त्याग का वचन निभाने की बात करता है। अदालत की बात कब मानते हो जो विपक्षी दल के नेताओं को ज़मानत मिली हुई है की बात हंसते हुए कहते हैं उपहास उड़ाते हैं जबकि आपके सरकार के मंत्री गंभीर अपराधों में ज़मानत पर हैं विपक्षी दल के नेताओं का मुकदमा तो जायदाद का है। आपके दल के इक तिहाई सांसद सौ से अधिक लोग ऐसे हैं जो आपराधिक मामलों के आरोपी हैं। छाज तो बोले छलनी भी बोले जिस में हज़ार छेद हैं। औरों के पाप पाप और आपके पाप देश सेवा और धर्म कर्म और पुण्य। आपके धर्म से डर लगता है हमारा धर्म हिंसा नहीं शांति की बात करता है मानवता की बात करता है। जो धर्म लोभ लालच सत्ता की चाहत और अहंकार का पाठ पढ़ाता है उस धर्म की इस देश को आवश्यकता नहीं है। कोई भी धर्म देश से बढ़कर नहीं हो सकता है और जो लोग देश के कानून को नहीं मानते संविधान की भावना को नहीं समझते उनका धर्म अधर्म हो सकता है धर्म नहीं।

नवंबर 11, 2018

तीसरा कौन है ( ज्योतिष की बात ) डॉ लोक सेतिया

       तीसरा कौन है ( ज्योतिष की बात ) डॉ लोक सेतिया 

     इसे मानो चाहे नहीं मानो की सूचि में रख सकते हैं । अभी उस नाम की चर्चा नहीं की जा सकती है। अभी सब इसी चिंतन में हैं कि अगला मोदी कौन अर्थात अगला शासक मोदी या राहुल। भाई ये कोई कुश्ती है दो पहलवानों की जो उन से एक की जीत और एक की हार होगी। धर्म कर्म मानने वाले लोग भूल गये कल क्या होगा कोई नहीं जनता पल भर का भरोसा नहीं और आप अगले चुनाव की अगले वर्ष की बात कर रहे हैं। लो आज इक ज्योतिष की जानकारी से अनजान आदमी घोषणा करता है अगला सत्ताधारी कोई तीसरा होगा। चाहो तो शर्त लगा सकते हो सट्टा गैरकानूनी है। है किसी टीवी वाले जाने माने अथवा हर फ़ोन कंपनी के संदेश वाले ज्योतिषी को मालूम उस तीसरे का नाम , चलो नाम नहीं तो इतना ही बता दो किस राशि का होगा , ये भी नहीं तो बताओ मेरी कुंभ राशि का होगा या मेष राशि का। मेरी इक राशि नाम से है दूसरी जन्म समय से। आपने गलत समझा मुझे राजनीति से कोई मतलब नहीं है और मैं अपनी बात नहीं कर रहा वैसे मेरी धर्म पत्नी को शायद लगता हो कि वो अच्छी नेता बन सकती है। मुझ में नेतागिरी के कीटाणु नहीं हैं। विषय पर आते हैं। विचार करो कि अगर अगले चुनाव में मोदी जी और राहुल जी घोषित कर दें कि उनकी ख्वाहिश नहीं है सत्ता पाने की और अब उनको सच में देश और समाज की सेवा करनी है बिना किसी पद की सत्ता की चाहत के तब क्या भूचाल आ जाएगा जो सवा सौ करोड़ लोगों के पास कोई नहीं होगा काबिल नेता प्रधानमंत्री बनने के लायक। नहीं उनका मोहभंग राजनीति से नहीं होगा और चुनाव भी लड़ेंगे मगर फिर भी होगा कुछ ऐसा जैसे दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर की मौज की कहावत है। मेरा मतलब किसी को बंदर कहने का नहीं है क्योंकि मानहानि की बात संभव है। समझा जाए तो हम बंदर से इंसान बने हैं और बंदर कहलाने में कोई अपमान की बात नहीं है वानरसेना से भगवान राम जंग जीत सकते हैं। 
 
       आपको आदत है पूछोगे ही कोई हिंट तो देना चाहिए। ठीक है वो पूरब से होगा न पश्चिम से उत्तर से नहीं होगा दक्षिण से भी नहीं , मगर उसका संबंध चारों दिशाओं से होगा। किसी भी एक दल से उसका नाता नहीं होगा और कोई भी दल उससे अछूता नहीं होगा। महिला पुरुष दोनों हो सकते हैं आयु की सीमा कोई नहीं होगी चाहे जितनी आयु हो बूढ़ा नहीं कहलाएगा न ही बचपना बाकी होगा। विवाहित कुंवारे से भी कोई मतलब नहीं है इतना समझ सकते है इसे लेकर दुविधा रहती है अक्सर। कुंडली बन चुकी है मगर अभी काफी उपाय करने को हैं थोड़ा इंतज़ार करें। इक अनुरोध इसे पढ़कर मेरे पास अपना भविष्य पूछने मत चले आना , मुझे किसी को ठगना झूठ बोलना या धोखे में रखकर फायदा उठाना नहीं आता न ही करना है। मगर मेरी बात शत प्रतिशत सही साबित होगी देखना अवश्य। 

 

इतिहास का काला अध्याय ( मौजूदा हक़ीक़त ) डॉ लोक सेतिया

  इतिहास का काला अध्याय ( मौजूदा हक़ीक़त ) डॉ लोक सेतिया 

 जो काम आज करने जा रहा हूं बेहद कठिन ही नहीं खुद अपनी रुसवाई की भी बात है फिर भी लिखने लगा हूं आजकल का वास्तविक इतिहास अपनी कलम से जिस पर कोई नाज़ तो नहीं किया जाना चाहिए। सोचा तो समझ आया कि हुआ क्या है जो हम सभी सदमें में हैं समझ नहीं पाये अभी तक हुआ क्या है। किसी व्यक्ति या दल से विरोध नहीं किसी विचारधारा से टकराव नहीं कोई चाहत नहीं शोहरत की नाम की न ही कोई गलतफहमी है इतिहास लेखन या साहित्य लेखन में मेरी अहमियत क्या कोई जानता तक भी नहीं। इक दर्द है इक टीस सी है सीने में चुभती हुई जो बेचैन किये है और हर दिन कुछ न कुछ घटता रहता है जो ज़ख्मों को कुरेदता रहता है। क्या ये तकलीफ़ मेरी है या पूरे देश की समाज की है और क्या ये एहसास मुझी को है या फिर बाक़ी लोगों को भी होता है। अगर होता है तो जो अनगिनत लिखने वाले हर दिन किताबें लिख लिख छपवा रहे हैं उन में किसी ने इस वक़्त की व्यथा को समझा है साहस किया है। लिखना क्या यही है जो अब पढ़ने को मिलता है और सभाओं में मंचों पर संस्थाओं के आयोजनों में सुनाया जा रहा है। केवल यही याद दिलवाना कि हम उनके वंशज हैं जो तोप के सामने कलम लेकर लड़ा करते थे। उन बहादुर लोगों के वंशज क्या ऐसे कायर हो सकते हैं। सच की बात का दावा करने वाले अख़बार टीवी चैनल से कविता कहानी लिखने वाले सब के सब क्या अपना फ़र्ज़ राह दिखलाने का कर रहे हैं या अपने सवर्थ सिद्ध करने वालों की भीड़ में शामिल होकर हुआं हुआं का शोर मचाने लगे हैं। पढ़ लिख कर समझदार कहलाने वाले लोग मुझे क्या सोच खुद को किनारे खड़े कर दूर से नज़ारा देख रहे हैं बर्बादी का और अपने समझदारी साबित करने को सोशल मीडिया पर व्यस्त हैं चौबीस घंटे। ऐसे में मैं इक नासमझ और पागल आपको आज के इतिहास का वो काला अध्याय पढ़कर सुना रहा हूं जिसपर कोई नाज़ नहीं करेगा चाहे बेशर्मी से नज़र बचाकर निकल जाने का कार्य करे या सुनकर अनसुना कर दे। 
               आपने सोचा क्या हुआ था जिस को देश की जनता ने चुना था उसने एक दिन बिना सोचे समझे घोषित कर दिया कि देश के हर नागरिक की तलाशी ली जाएगी। कभी किसी थानेदार ने शहर भर की तलाशी की बात की है किसी इतिहास में लिखा है। अपराधी को पकड़ने का ये तरीका क्या मंज़ूर किया जा सकता है। फ़िल्मी पार्टी में किसी का कीमती हार चोरी हो गया तो सभी बुलाये महमानों की तलाशी की बात की जाती देखी है कोई नहीं खुद को अपमानित महसूस करता। वास्तव में कोई किसी से ऐसा कहे तो जीवन भर उससे बात ही नहीं करना चाहोगे। मगर यहां ये घोषणा करने वाला तो घर का मालिक भी नहीं है चौकीदार है जनता का रखा हुआ। रखवाली करना छोड़ सब को चोर समझने लगा है। उसने कहा था तलाशी के बाद चोर नहीं पकड़ा गया तो सज़ा खुद उसे लोग दे सकते हैं चौराहे पर खड़ा कर मगर दो साल बाद तक चोरी का माल बरामद हुआ नहीं फिर भी उसको अपना अपराध स्वीकार नहीं है। उसकी गलती है कि नहीं क्या ये भी खुद वही तय करेगा। मामला इतना ही नहीं है उसकी गलतियों की कोई गिनती ही नहीं की जा सकती। अमेरिका में ट्रम्प के झूठ कितने हैं बता रहा है मीडिया मगर यहां हर झूठ को सच घोषित किया जा रहा है। 
 
           आज जब सत्ता संवैधानिक संस्थाओं को ध्वस्त करने लगी हुई है और जो उसकी नहीं मानता उसी को गुनहगार साबित कर सज़ा देने लगे हैं सीबीईआई आईबी अदालत के बाद आरबीआई की बारी है और आगे किस किस को बर्बाद करना है उनके इरादे नहीं मालूम। क्योंकि उनको अभी सत्ता चाहिए और किसी भी तरह से हर कीमत पर चाहिए। पहले उनसे कोई पूछेगा आपको चुना किस किस वादे पर गया था उनका क्या हुआ। अपने जो किया सब सामने है मगर चुनाव से पहले अपने ये तो नहीं कहा था कि आप सत्ता मिलते ही देश विदेश घूमने का कीर्तिमान स्थापित करना चाहते हैं और उस पर इतना धन देश का खर्च करेंगे जो पहले कभी किसी ने नहीं किया और उन सारी विदेशी यात्राओं से देश को मिलना कुछ नहीं केवल आपकी छवि चमकानी है। ये बहुत महंगी देशभक्ति है जो देश को देती कुछ नहीं लेना सभी कुछ चाहती है। अपने तो लोगों को बताया था कि अपने गरीबी देखी है और गरीबों की हालत सही करोगे मगर अपने तो रईसों की तरह शान से जीवन व्यतीत करने में राजाओं महाराजाओं को पीछे छोड़ दिया। अपने रहन सहन वेश भूषा और हर गली चौराहे पर अपनी तस्वीर के विज्ञापन से क्या देश की दशा बदल जायगी या आप की हंसती मुस्कुराती तस्वीर जनता को चिढ़ाती लगती है। काला धन मिला नहीं काले धन वाले जेल नहीं गये और आपके ख़ास लोग देश के बैंकों का धन लेकर रफू चक्क्र हो गए। अपने बार बार कहा था परिवारवाद को खत्म करना है मगर अपने संघवाद को बढ़ावा दिया और हर राज्य में सत्ता विस्तार कर संघ के लोगों को सत्ता पर थोपने का काम ही नहीं किया बल्कि ऐसे लोगों के सरकार चला पाने में असफल होने पर भी ख़ामोशी से साथ दिया और ऐसे नाकाबिल लोग मनमानी कर अपराध और दहशत को बढ़ाने का काम करते रहे। 
 
        नाम बदलना और पुराने लोगों को बदनाम कर खराब साबित करना क्या यही किसी चुनी हुई सरकार का ध्येय होना चाहिए। सत्ता की हवस में आपने उस पुरानी कहानी को दोहराया है जिस में और अधिक ज़मीन पाने की चाहत में कोई शाम ढलने तक अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंच पाता है। हाउ मच लैंड ए मैन नीड्स। अब आपको पता चलने लगा है जब साये लंबे होते जा रहे हैं मगर अपने जिस मंज़िल पर पहुंचना था वो कहीं दिखाई नहीं दे रही है। अच्छे दिन नहीं हैं। भ्र्ष्टाचार बढ़ा है। गरीबी बढ़ी है।  महंगाई और बढ़ती गई है। लोग असुक्षित हैं। महिलाओं को और भी चिंता बढ़ी है सुरक्षा को लेकर। रोज़गार खत्म हुए हैं।  कारोबार बर्बाद हुए हैं।  किसान ख़ुदकुशी करने को विवश हैं। सीमा पर सैनिक शहीद हो रहे हैं। पहले सत्ताधारी लोगों ने जो भी बनाया सामने है अपने क्या बनाया है नहीं मालूम। भूखे भजन न होय गोपाला। देश को मंदिर मस्जिद और धर्म के नाम पर नफरत और बांटने का काम नहीं करना था और किसी ऊंची मूर्ति से एकता होती है ऐसा शायद ही कोई समझता है। सार्थक क्या है जिसे सुनहरे हर्फों में लिखा जाये आज का इतिहास ऐसा हर्गिज़ नहीं जिस पर भावी पीढ़ियां गर्व करेंगी।

       इक पुरानी कहानी फिर से लिखनी पड़ी है। इक नगर का शासक बनाने की बात आई तो इक जादूगर आया कहीं से और उसने दावा किया जादू की छड़ी से सब कुछ कर दिखाने का। लोग भोले और नासमझ सपने बेचने वाले सौदागर की चिकनी चुपड़ी बातों में फंस गये। और उस के सर पर ताज रख दिया। वो हर दिन खेल तमाशे दिखलाता और हाथ की सफाई और आंखों के सामने झूठ का सुनहरा पर्दा डालकर शानदार दृश्य दिखलाता और कहता कि जल्दी ही इस ख्वाबों की दुनिया को वो हक़ीक़त में बदल देगा। मगर वास्तव में उसे जादू से धोखा देने को छोड़ कुछ भी नहीं आता था। उसको जितना समय दिया गया था धीरे धीरे व्यतीत होता गया और आखिर में उसने नगर वालों को बर्बाद ही कर दिया। संक्षेप में आज भी हम वास्तविकता और छल का अंतर नहीं समझते हैं और ठग आते रहते हैं। हम खुश हैं ठगस ऑफ़ हिंदुस्तान फिल्म के बड़े बड़े अभिनेता हमें जादूगर की तरह झूठी दुनिया में रखना चाहते हैं और हम ख़ुशी से उनको धनवान बनाने को तैयार हैं जबकि ठग तो हमारे पर नेता अधिकारी क्या साधु संत बनकर भी आते रहते हैं जो खुद अपनी इच्छाओं को पूरा करते हैं मगर हमें भगवान सब करेगा का सबक पढ़ाकर उल्लू बनाते हैं। 

 

नवंबर 09, 2018

कारोबारी बाबाओं के भरोसे देश ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

   कारोबारी बाबाओं के भरोसे देश ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

  सवाल गंदुम जवाब अदरक हमारे बज़ुर्ग मिसाल दिया करते थे। ये होना ही था जाने क्यों किसी को पहले विचार नहीं आया। सीबीआई की समस्याओं को आर्ट ऑफ़ लिविंग वाले रविशंकर जी तीन दिवस के शिवर में हल करेंगे। शायद इसके बाद आरबीआई में आयोजन करवाना पड़ सकता है आईबी की बारी आ जाए तो भी हैरान मत होना। आपको क्यों याद होगा ये वही रविशंकर जी हैं जिन पर यमुना तट पर तमाम नियम कानून तोड़ने पर जुर्माना लगाया गया था जिस आयोजन में देश का चौकीदार भी शामिल हुआ था। तब से यमुना में कितना पानी बह गया और गंदगी भी बढ़ गई होगी स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद। विज्ञान के युग में हम अभी भी सदियों पुराने तौर तरीकों से देश को जाने किधर को धकेल रहे हैं। इक कहानी याद आ रही है मगर अभी ठीक से याद करने के बाद आगे विस्तार से लिखूंगा। उस में शासक राजा और अधिकारी इक मदहोशी का शिकार होकर बहुत अजीब बातें निर्णय और कार्य करते हैं मगर कोई होता है जो इस सब के बाद भी कोई अनहोनी नहीं होने देता है। अफ़सोस इस बात का है कि उस जैसा कोई किरदार अब संभव नहीं है और अगर हो भी तो हाशिये पर धकेला जा चुका होगा। सच्चाई ईमानदारी और देश के लिए निष्ठा ऐसे गुण हैं जो कोई माने चाहे नहीं माने विलुप्त हो चुके हैं या इनको अवगुण मान लिया गया है। 

     ( बाकी बात कल आगे लिखी जाएगी उस कहानी को याद करने के बाद )


 


मुझे दे दो अपने गहने ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

     मुझे दे दो अपने गहने  ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

 सरकार और रिज़र्व बैंक का आपसी मामला है। सरकार समझा रही है जो धन तिजोरी में रखा हुआ है उसकी चाबी तुम मुझे सौंप दो मेरा धंधा मंदा चल रहा है। रिज़र्व बैंक नियम बताता है कि जो सुरक्षित रखना है उस पर आपकी नज़र नहीं होनी चाहिए उस से ज़्यादा जितना अपने मांगा दिया है मगर आपकी हालत और बिगड़ी है अब बचा हुआ देना अनुचित होगा। स्वायतता की बात सरकार को खलती है। कहानी को कहानी से समझ सकते हैं। पति पत्नी सात जन्मों का बंधन होता है और पत्नी मायके से लाई हो या विवाह में उपहार मिले हों ससुराल वालों से दोनों सोने के गहनों पर अधिकार उसी का होता है। हर महिला उसको जान से बढ़कर प्यार करती है और कोई भी मुसीबत आने पर यही उसका सहारा होता है। पति से झगड़ा हो या नाते रिश्ते निभाने हों पत्नी घर खर्च से थोड़ा बचा कर रखती है। दो साल पहले सरकार ने सभी महिलाओं की बचत को पल भर में बर्बाद कर दिया साथ में हर पत्नी को बदनाम भी किया अपने पति से झूठ बोलती हैं ऐसा साबित कर। क्या गुनाह किया था उन्होंने न ही रिज़र्व बैंक की गलती है जो नियमानुसार सुरक्षित धन सरकार को देने में घबरा रही है पत्नी की तरह और पति धौंस दिखा रहा है कानून बदलने की। 
 
         चार साल से मनमानी की है और देश के धन को फज़ूल के कार्यों पर उड़ाया है मगर अभी भी स्वीकार नहीं  करना चाहते कि नातजुर्बाकारी के कारण मूलधन ही बचा नहीं मुनाफा ख़ाक होता मगर बही खाते में कमाई दिखानी है। नाम गरीबों का बदनाम है जो बीवी को मार पीट कर उसकी कमाई से शराब पीकर ऐश किया करते हैं। नेताओं के देश का धन अपने घूमने फिरने देश विदेश में सरकारी साधनों से निजि कार्य दान धर्म अपने लिए शोहरत हासिल करने पर खर्च करने को अय्याशी से भी खराब अमानत में खयानत समझना होगा। कोई कारोबार के लिए गहने बेचना चाहता है कोई घर बनाने को कोई मज़बूरी में बेटी की शादी पर घर गहने सब बेचने पर विवश हो जाता है मगर सरकार को चुनाव से पहले अपने चेहरे को चमकदार बनाकर दिखाना है। अब अगर नहीं जीते चुनाव हर गये तो आने वाली सरकार सोचेगी क्या करना है। जी हां ऐसे लोग होते हैं जो अपने स्वार्थ को देखते हैं और अपने मतलब को भविष्य तक दांव पर लगा देते हैं। रिज़र्व बैंक या द्रोपती खुद को जुए में दांव पर लगने से इनकार नहीं कर सकती। सवाल आपके पद और संस्था का नहीं है सरकार के पति की तरह मालिक होने का है। पति कहता है मेरा है चाहे जैसे खर्च करूं बर्बाद होगा तो भी मेरा है तुम कौन होती हो रोकने वाली। कोई उसको याद दिलाए कि आप भी किराएदार हो मालिक नहीं और आपका भी अनुबंध खत्म होने को है। 

 

नवंबर 08, 2018

खज़ाना मिल गया ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        खज़ाना मिल गया ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     आज ही का दिन था जब खुदाई शुरू की थी कुबेर का खज़ाना दबा हुआ है काले बक्से में इसका शोर बहुत था। सबको कहा था उसने पचास दिन लगेंगे खुदाई में बस उसके बाद इतना बड़ा खज़ाना हाथ आएगा कि सब को सभी कुछ मिल जाएगा और बुरे दिन इक सपना बनकर रह जाएंगे , अच्छे दिन जब आएंगे। मौज उड़ाएंगे झूमेंगे गाएंगे जाम से जाम टकराएंगे। खाज़ना किस जगह है कोई नहीं जनता था शक था विदेश में अधिकांश धन गढ़ा हुआ है पर खुदाई देश से करनी थी और घर घर से करनी थी। किसी न किसी घर से कोई न कोई सुरंग जाती होगी स्विस बैंक तक और वापस उधर से देश के किस बैंक तक आती है पता लगाना ज़रूरी था। खुदाई हुई खज़ाना कितना मिला अभी तक हिसाब ही नहीं लगाया जा सका है मगर है ज़रूर खज़ाना। खुदाई करने वालों को पता है मगर खज़ाना मिलते ही खुदाई करने वालों की नीयत खराब हो जाती है। सब आपस में हिस्सा बांट लेते हैं और खज़ाना मिलने की बात खुदाई की जगह ही दफ़्न कर दी जाती है। लोग समझते हैं किसी की सनक थी कोई खज़ाना नहीं मिला बेकार खुदाई से बर्बादी की गई। मगर उनकी मर्ज़ी है सच्चाई बताएं या छुपाएं। खज़ाना उनका चौकीदार खुद सरकार है। आज भी रात आठ बजते सबकी धड़कन बढ़ जाएगी सोच कर। अली बाबा चालीस चोर बनानी थी मगर बना दी ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान और आज ही रिलीज़ कर दी है। सीने में ऐसी बात मैं दबा के चली आई , खुल जाए वही राज़ तो दुहाई है दुहाई। राज़ की बात पता चली है सरकार की तिजोरी खाली हो चुकी है और अब इरादा रिज़र्व बैंक में सेंध लगाने का है।
 
     कुबेर जी ऊपर बैठे भगवान से विचार विमर्श कर रहे हैं। देवी लक्ष्मी जी इस बार भारत की धरती पर दीपावली की रात गईं तो साथ धन नहीं लेकर गईं इस डर से कि कहीं चौकीदार का आयकर विभाग हिसाब पूछने लगा तो बांटने से पहले ही ज़ब्त कर अपना खज़ाना भर लेगा। ऊपर से ज़हरीली हवा और शोर के साथ नकली रौशनी की चकाचौंध में भटकने का भी खतरा था। ऐसे में अमीरों के महलों की रौशनियों में गरीबों की अंधेरी बस्तियां अपनी तरफ देखने को विवश करती हैं। भगवान हैरान है उसके नाम पर इतनी बर्बादी धन की कैसे की जा रही है जब देश की आधी आबादी बदहाली में रहती है। अधर्म है आडंबरों पर देश का धन लुटाना या भगवान के नाम की आड़ में राजनीति की रोटियां सेंकना। देखो ऐ दीवानों तुम ये काम न करो , राम का नाम बदनाम न करो। ऐसे में नारद जी भी चिंता बढ़ा गये हैं ये जानकारी देकर कि किसी ने सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प पर करोड़ों को पैसे देकर गुणगान को रख रखा है और हर महीना नकद राशि लेकर भक्ति हो रही है। भगवान का अपना एक भी अकाउंट किसी साईट पर नहीं है। नकली भगवान भरे पड़े हैं जिनकी गिनती ही नहीं।
 
              टीवी चैनल वालों के भी अपने अपने भगवान हैं जो झूठे विज्ञापन करते हैं कमाई करने को मगर अख़बार टीवी वालों की आमदनी विज्ञापनों से ही होती है इसलिए उनके भगवान वही हैं। महात्मा जूदेव की बात भूली नहीं है उन्होंने सालों पहले घोषित किया था स्टिंग ऑपरेशन में कि पैसा खुदा तो नहीं मगर खुदा की कसम खुदा से कम भी नहीं। खज़ाने की बात उनसे बेहतर भला कौन जनता होगा मगर अब सरकार उनके दल की है पर उनका कोई अता पता ही नहीं है। भगवान को अभी कोई ये नहीं बता सकता कि इधर भारत देश में लोग भगवान से कई गुणा अधिक नाम किसी नेता का लेते हैं। भगवान को भी लोग लालच की खातिर रटते हैं या डर से और उस नेता को भी इसी तरह लालच या डर से लोग नाम लेते हैं। खुश है वो भी दहशत ही सही डंका बजना चाहिए। खज़ाने का क्या हुआ इस पर सभी चुप हैं सरकार खुदाई को बेकार नहीं मानती और लोगों को अभी भी बुरे दिनों से कोई राहत मिली नहीं है। घोटालों की पुरानी बात है हुए मगर साबित नहीं हुए और चोर चोर का शोर आज भी जारी है मगर पकड़ा नहीं जाता कोई भी चोर। चोर दिन दहाड़े लूट लेते हैं साधु बनकर। राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट , ये लो फिर नारद जी चले आये हैं गाते हुए। नारद जी को कौन समझाए सभी अपनी खैर मनाते हैं।

        खुदाई में खज़ाना मिला या नहीं मगर कोई नक़्शा हाथ लगा है जिस पर शोध किया जाना है। ऐसे ज़मीन में दबे गढ़े नक़्शे मिलने पर पाने वाले नाचने झूमने लगते हैं उनको जैसे स्वर्ग जाने का ही नहीं स्वर्ग का शासन हासिल करने का तरीका नक़्शे पर खुदा हो। खुदाई वाले नक़्शे को समझते रह गए और कोई ठग उनके चले जाने की राह देखता रहा ताकि उनके जाने के बाद छुपे खज़ाने को बाहर निकाल उस पर अपना क़ब्ज़ा जमा ले। खज़ाना हाथ नहीं आया खज़ाने का राज़ समझ आ गया है।