जुलाई 18, 2018

ईश्वर मैं नास्तिक बन गया ( सच्ची बात ) डॉ लोक सेतिया

  ईश्वर मैं नास्तिक बन गया ( सच्ची बात ) डॉ लोक सेतिया 

  हो नहीं हो की बहस से क्या हासिल। बस जितनी ईबादत करनी थी हो चुकी। इस उलझन से बाहर निकल आया हूं। होने नहीं होने से मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता। की नहीं जाती अब तेरी पूजा अर्चना ईबादत परस्तिश। आज सोचा तो विचार करने लगा तुम क्या कर रहे हो। शहर शहर गांव गांव गली गली अपना ठिकाना बनवाते फिरते हो और जिनको इंसान बनाया उनका हाल कभी पूछा भी नहीं। मैंने बहुत पहले कहा था। 

        हाल पूछे आकर हमारा जो खुद , एक ऐसा भी कोई खुदा चाहिए।

     जा के किस से कहें हमको क्या चाहिए , ज़हर कोई न कोई दवा चाहिए। 

 तुम आये ही नहीं कभी , मैं ही जाता रहा तुझे मिलने तुझसे शिकायत करने तुझसे हाल ए दिल कहने। ये इश्क़ एकतरफा था , तुमने कभी इज़हार ए इश्क़ किया ही नहीं। मुझे प्यार करते तो क्या इतने दर्द देते इतनी परेशानियां इतनी सज़ाएं किस गुनाह की। नहीं मेरी भूल थी तुम खुश होते अगर मैं रात दिन तुम्हारा नाम रटता तुझे सुबह शाम मनाता आरती करता और अगर पास नहीं थी दौलत तो किसी भी तरह जमा करता औरों से छल कपट कर और तेरे को उसका कुछ हिस्सा देता रहता। तब दुनियादारी को समझ मैं भी अमीर कहलाता। गरीबों का कोई भगवान है ही नहीं। आलिशान भवन कितने और दौलत के अंबार और छप्पन भोग तेरे लिए हैं ऐसे में बेघर भूखों की चिंता क्यों करते। तेरे नाम पर क्या क्या नहीं होता अन्याय मगर तुम खामोश तमाशा देखते रहते हो। मरने के बाद क्या न्याय करोगे कौन जाने , देख लेंगे जब कभी सामने आया वो बही खाता वो धर्मराज की अदालत। चलो अपनी दुनिया का हाल सुन तो लो। चाहे कुछ भी मत करना। 
 
           ताकत धन दौलत शोहरत जिसे जितनी मिलती है उतना ही लोभी लालची और अहंकारी बन जाते हैं। जिस को जितना जनता सर पर बिठाती है वो उतना ही निरंकुश बन जाता है। कहते हैं अपने सिवा किसी को नहीं रहने देना , यही उनका लोकतंत्र है। सर्वोच्च न्यायालय केवल सलाह दे सकता है , सलाह मानता कौन है। उपदेश देने वाले हैं सभी पालन करने वाला कोई हो तो मूर्ख अज्ञानी कहलाता है। भीड़ बनकर जो मर्ज़ी करो भगवान भी तमाशाई है सरकार भी तमाशाई ही नहीं सहयोगी है। इसी भरोसे तो बढ़ रहा है भीड़ के न्याय का चलन। वह रे भक्त वह रे भगवान , क्या बढ़ रही है तेरी शान , हो गया कितना बदनाम। जानता हूं ये सब किसी सभा में कहूंगा तो क्या होगा , भीड़ मुझे नास्तिक होने की सज़ा देगी। जिसे वो मानते हैं सब को मानना होगा अन्यथा इस जहां को छोड़ना होगा। जितनी सत्ता की हद बढ़ती गई उतना अभिमान अपने पर बढ़ता गया और अपना हर काम महान लगने लगा। 
 
              माफ़ करना धर्म की किताबों को पढ़कर उकता गया हूं। आदमी को भाग्यवादी ही नहीं कायर बनाती हैं। अन्याय अत्याचार से खुद नहीं लड़ते भगवान के भरोसे रहते हैं , लोग पूजा आरती करते रहे और लूटने वाला सब लूट कर ले गया। इतना अंबार क्यों जमा कर लिया तुमने जिस को बचाने भी नहीं आ सकता। हम गीता का संदेश पढ़ते रहे , यदा यदा .....   आया नहीं कोई कृष्ण इस कलयुग में। अभी भी नहीं समझा तो क्या मरने के बाद मेरी लाश समझेगी वास्तविकता तेरी। भीड़ की भेड़चाल से घबरा कर भी तेरा नाम नहीं लूंगा। कोई मतभेद नहीं है हमारे बीच , जितनी निभ गई बहुत है , इक पंजाबी ग़ज़ल है , क्या कहते हो जितना साथ रहा काफी नहीं। अब अपने अपने रास्ते जाएं हम दोनों। ये ज़रूरी तो नहीं तुम मुझे प्यार करो , ये भी तो बंदिश नहीं कि मैं तेरे प्यार की खैरात मांगू। मुझे तो सरकार से भी हक चाहिएं अधिकार पूर्वक भीख या खैरात नहीं। मेरी ग़ज़ल सुनोगे , पिछली सरकार के वक़्त की कही हुई है जो आज भी सही है।

हक़ नहीं खैरात देने लगे ,
इक नई सौगात देने लगे।

इश्क़ करना आपको आ गया ,
अब वही जज़्बात देने लगे।

रौशनी का नाम देकर हमें ,
फिर अंधेरी रात देने लगे।

और भी ज़ालिम यहां पर हुए ,
आप सबको मात देने लगे।

बादलों को तरसती रेत को ,
धूप की बरसात देने लगे।

तोड़कर कसमें सभी प्यार की ,
एक झूठी बात देने लगे।

जानते सब लोग "तनहा" यहां ,
किलिये ये दात देने लगे।