मई 20, 2018

कभी सब कुछ कभी कुछ नहीं करते ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

   कभी सब कुछ कभी कुछ नहीं करते ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

    ये इक मिसाल है , कर्नाटक में विधानसभा में बहुमत की बात , सरकार बनाने - गिराने की बात। कहने को लोकतंत्र बचाने की बात मगर वास्तव में व्यवस्था के होने नहीं होने की बात। सब ठीक हो गया या अभी होना बाकी है मुझे इस की चर्चा नहीं करनी है। कोऊ नृप होय मोहे क्या हानि , हम जनता तो शासित होने को हैं शासक कौन है क्या फर्क पड़ता है। सत्ता की छुरी ने जनता रुपी आम को काटना है और उसे खाना है अपना पेट भरना है स्वाद चखना है। फाडियां बनाकर खाएं या चूस कर या चाहे शेक बनाकर सब उनकी इच्छा पर है। फिर इसकी चर्चा का मकसद क्या है , मकसद है हर दिन हम देखते हैं राजनेताओं अधिकारियों और देश की सारी व्यवस्था जिस में न्यायपालिका से मीडिया तक चैन की बांसुरी बजाते रहते हैं अचानक कितने एक्टिव हो जाते हैं कि हर पल कुछ हो रहा कुछ बदल रहा सभी को समझ भी आता है और दिखाई भी देता है। मगर ऐसा होता हमेशा इक ख़ास वर्ग की खातिर ही है। आम नागरिक की बड़ी छोटी छोटी समस्या पर सालों साल होता कुछ भी नहीं। आखिर क्यों ? क्या देश और राज्य में सरकार बनाना एक मात्र कार्य है या सरकार होने का कोई और अर्थ भी है कि जो जो सामन्य रूप से होना है किया जाता रहे और जो नहीं होना चाहिए उसे करने नहीं दिया जाये और न ही कोई वो कार्य करे जो उसे नियमानुसार ईमानदारी से नहीं करना चाहिए। इसी को फिर से देखें तो बहुत कुछ है जो नहीं किया जाना चाहिए था। जिनको मालूम था उनके पास संख्या बल नहीं है उनको सरकार बनाने का दावा करने के साथ राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद का मनमाने ढंग से दुरूपयोग नहीं करना चाहिए था और अगर सरकार बनाना चाहते भी थे तो उसके लिए विधायकों को खरीदना या लालच देना अथवा डराना धमकाना जैसे आपराधिक ढंग नहीं अपनाने चाहियें थे। सोचो अगर सर्वोच्च न्यायालय कठोर कदम नहीं उठाता और कुछ दिन की मोहलत उनको मिल जाती तो जो नहीं हुआ और नहीं होना चाहिए वही हुआ होता। ये नौबत आई ही इसलिए कि देश में हर कोई अपनी सुविधा और स्वार्थ की खातिर जब जो मर्ज़ी करता है , किसी को लाज नहीं आती , कोई शर्मसार नहीं होता अपने आचरण पर। जो पीछे से निर्देश देकर इस देश की व्यवस्था को छिन्न भिन्न करने का काम कर रहे थे उन पर आंच नहीं आई और उनके गंदे मनसूबे सामने आकर भी ढके छुपे रह गए। दो दिन में दूसरा पक्ष सरकार बना लेगा और बहुत हद तक वो भी अवसरवादी गंदी राजनीति से किनारा नहीं करेगा ऐसा अक्सर होता है। सत्ता की पदों की बंदरबांट होगी और वास्तविक जनादेश की चर्चा को विराम दे दिया जाएगा। 

                          ये सब तब क्यों नहीं होता। 

       ये केवल भूमिका थी जिसे थोड़ा विस्तार से बताना पड़ा ताकि समझा जा सके। आम नागरिक की समस्याएं वास्तव में बहुत बड़ी नहीं होती हैं और अगर सरकार और सरकारी अधिकारी खुद ही जो उचित है उसे करते रहें और जो अनुचित हो उसे रोकते रहें तो हम सभी को शिकायत करनी ही नहीं पड़े। हम विवश होकर शिकायत करते हैं और अपने अधिकार मांगते हैं जो अधिकारी नेता देते नहीं हक की तरह और जब देना पड़े तो खैरात की तरह उपकार बतला कर देना चाहते हैं। वो ऐसा कर सकते हैं क्योंकि हमारे बीच में से कुछ लोग खुद अपने स्वार्थ के लिए ऐसे कार्य करते हैं जो उनको पता होता है कि करना अनुचित है। सब से पहले अगर देश के नगरिक ही सभ्य ढंग से नियम कानून का पालन करें तो अधिकतर मुश्किलें खड़ी ही नहीं हों। सड़क पर वाहन चलाते बहुत लोग औरों के लिए खतरा बने होते हैं , लाल बत्ती पर किसी को जिस तरफ टर्न लेना उस तरफ नहीं दूसरी तरफ वाहन खड़ा कर जब ह्री बत्ती हो तब गलत ढंग से अपनी सड़क को मुड़ते हैं और पुलिस वाला चुपचाप देखता रहता है रोकता नहीं समझाता नहीं। लोग अगर औरों को असुविधा नहीं होने की बात पर ध्यान दें तो ये कोई समस्या ही नहीं है।

                                इसी तरह गंदगी की बात है , हमारे अधिकतर शहर बेहद गंदे दिखाई देते हैं। स्वच्छता अभियान के नाम पर इश्तिहार ही दिखाई देते हैं। जिन को सफाई का ध्यान रखना है और शहर की गंदगी मिटानी है वो नगरपरिषद के प्रधान से सीईओ तक हद दर्जे के लापरवाह और गैर ज़िम्मेदार लोग हैं। किसी ने सरकारी प्लॉट्स को रोका हुआ है किसी ने सड़क को किसी ने पार्क को किसी ने फुट पाथ को। कोई नहीं विचार करता पार्किंग की जगह अपना धंधा करोगे तो लोग वाहन सड़क पर खड़ा करेंगे। ठीक है कुछ लोग विवश होकर रोटी कमाने को ऐसा करते हैं मगर बहुत हैं जो न केवल किराये की जगह ले सकते हैं बल्कि उनकी अपनी दुकानें हैं जो किराये पर उठा रखी हैं और खुद अनधिकृत कब्ज़ा आदतन करते हैं। जो गरीब मज़बूरी में किसी जगह धंधा करते हैं उनको भी अपनी गंदगी का प्रबंध खुद करना तो चाहिए। सड़क पर पार्क में फुट पाथ को गंदा करना मज़बूरी नहीं कहला सकता। आप के कारण गंदगी बदबू ही नहीं लोगों को रोग तक होने का अंदेशा है। आपके कारण कोई बीमार हो ये कैसे आपका अधिकार हो सकता है। जब कोई इसकी शिकायत करता है तो विभाग के लोग और अधिकारी अनुचित कार्य रोकने का उपाय नहीं करते उल्टा आम लोगों को आपस में भिड़वा देते हैं। किसी ने किसी की शिकायत निजि कारण नहीं की , जनहित और शहर में अपने आस पास सब की परेशानी और स्वस्थ्य को वातावरण को प्रदूषित होने को लेकर की है। आपको उचित काम नहीं करना क्योंकि आपके स्वार्थ जुड़े हैं अनुचित काम करने वालों से संबंध हैं , मतलब आप किस तरफ हैं गंदगी करने वालों का बचाव करते हैं मगर स्वच्छ भारत अभियान को असफल करते हैं।

           ये एक दो समस्याओं की बात है। मगर बहुत ऐसी समस्याएं हैं जो सरकार और सरकारी विभाग अपना कर्तव्य निभाएं तो पैदा ही नहीं हों। कर्नाटक की बात करने का मकसद यही था कि जिस तरह सब ख़ास लोगों की समस्या पर तेज़ी से कार्य करते हैं आम जनता की समस्याओं को लेकर होते तो कितना अच्छा होता। 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

मुद्दे की बात👌👌👍