मई 16, 2018

थोड़ी ख़ुशी थोड़ा ग़म ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

        थोड़ी ख़ुशी थोड़ा ग़म ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

    कल ही की बात है सुबह लड्डू खा खिला रहे थे , दोपहर तक ख़ुशी अधूरी लगने लगी जब जीत भी थोड़ी कम रह गई और बहुमत नहीं मिला। जीत का सेहरा जिनके सर बंधना था उन्हीं के संसदीय क्षेत्र में इक हादिसा भी इसी दिन हो गया।  ग़म भी थोड़ा मिला तो ख़ुशी मनानी मुश्किल हो गई। बहुमत का जुगाड़ कर सत्ता मिलते ही चुनावी दुःख दर्द भूल जाएगा मगर जो लोग बेमौत मारे गए उनकी याद किसे रहेगी। दो पांच लाख मिल गए सरकार की मेहरबानी कम नहीं है। उधर कुछ गिद्ध लाशों पर अपनी असलियत दिखला रहे थे मुर्दाघर से लाश मिलने को रिश्वत की मांग कर रहे थे। भला भ्र्ष्टाचार कैसे हो सकता है उनके अपने क्षेत्र में अपने दल के शासन में। जांच होगी और हमेशा की तरह पुल गिरने से लेकर लाश की कीमत मांगने तक होगा कुछ भी नहीं। आज तक सरकारी विभागों के गलत काम करने या उचित काम नहीं करने की कोई सज़ा किसी को मिली है। बदलता कुछ भी नहीं है। सरकार बदलने से सरकारी लोग नहीं बदलते न ही उनके तौर तरीके बदलते हैं। छोड़ो शेरो शायरी , है लाश वही सिर्फ कफ़न बदला है। ये कफ़न भी सफ़ेद नहीं किसी रंग से रंगा है। 
 
   राजनेता तो मगरमच्छ के आंसू बहाना जानते हैं मगर सरकारी अमला तो बाढ़ हो सूखा हो या कोई आपदा हो , कभी उनसे फायदा उठाने में पीछे नहीं रहते। ये कुछ अलग तरह के पत्थर से बने लोग होते हैं जिनमें मानवीय संवेदना नाम की भावना नहीं होती , पाप पुण्य का अपराधबोध नहीं होता। वेतन भले लाखों रूपये मिलते हों और सुविधाएं करोड़ों की मुफ्त में फिर भी ऊपर की कमाई का मोह जाता ही नहीं है। अब रिश्वत अपराधी ही देंगे सहयोग पाने के लिए या आम नागरिक को अकारण परेशान करने से मिल सकती है , अपना कर्तव्य निभाने से केवल वेतन मिलता है। इक विशेष बात होती है बड़े बड़े अफसरों की कोई उनसे विभाग में हो रहे अनुचित कार्यों की बात करे तो ऐसे भाव दिखलाते हैं जैसे उनको कुछ अता पता ही नहीं। इतने भोले लगते है कि उन पर न्यौछावर होने को दिल करता है। हुस्न वाले कातिल होते है तो ये भोलेपन की आड़ में क्या नहीं कर जाते।

                      कौन कहता है गिद्ध कम हो रहे हैं , सरकारी दफ्तरों की कुर्सियों पर कितने गिद्ध विराजमान हैं। ये किसी इंसान की मौत का इंतज़ार नहीं करते , जीते जी इंसानों के जिस्म की बोटी बोटी नोच खाते हैं। ये सभी पल भर में चेहरा बदल लेते हैं। हादिसे में मरे लोगों को सांत्वना देते दुःखी लगते हैं और उस जगह से बाहर निकलते ही किसी बात की ख़ुशी में जाम छलकाने लगते हैं। दोनों मिलने से सत्ता का नशा और बढ़ जाता है तभी नेता जी थोड़ी अधिक जीत मिलते ही किसी दल को नीचे दिखलाने वाले बयान देने लगते हैं। थोड़ी लाज शर्म बचाकर रखनी चाहिए और अपने अतीत को कभी नहीं भुलाना चाहिए। शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है , जिस शाख पे बैठे हो वो टूट भी सकती है।

                        इन राजनेताओं की परेशानी बढ़ गईं हैं जबसे इनकी बातें विडिओ में रिकॉर्ड होने लगी हैं , बार बार उपहास होता है देश के सब से बड़े पद का जब कोई बात नेता जी सत्ता में आने के बाद बोलते हैं और मीडिया वाले उस की उल्ट कही बात भी याद करते हैं जब किसी और की सत्ता थी और आपने कही थी। मगर टीवी चैनल वाले कभी इसको तूल नहीं देते क्यिंकि उनको सत्ता साथ मिलकर विज्ञापनों की मलाई खानी है। इस को मनोरंजन की तरह खबरों के बाद कार्टून बना दिखला हवा में उड़ा देते हैं। ये हंसी ठठा भी नेताओं को अपना गुणगान जैसा लगे ये भी देखा जाता है। कभी अख़बार में इक कार्टून बहुत बेचैन कर दिया करता था। अब इस पुल गिरने पर भी नेता जी का पुराना बयान सुनाया गया जिस में वो तब की सरकार पर आरोप लगते हैं कि ये एक्ट ऑफ गॉड नहीं है भ्र्ष्टाचार है। ये सच है ऐसे हादिसे भगवान नहीं करवाता , कुछ लोगों की लापरवाही और अपराध के कारण होते हैं। मगर इन नेता जी की समस्या दूसरी है हर अवसर पर कोई न कोई विशेष पूजा करते रहते हैं मंदिर मंदिर जाकर और सब को मानना होगा उनसे बड़ा भगवान का भक्त कोई नहीं है। बेशक पहली बार सुन रहे हैं उनके खुद के भक्त लोग हैं जो उनके नाम पर लड़ भिड़ सकते हैं और हंगामा कर देते हैं जब कोई सत्ता धारी नेता की सरकार की आलोचना करे।

           आपने कभी किसी धर्म को समझा है , किसी भी धार्मिक किताब को पढ़ते तो मालूम होता कि पूजा पाठ अर्चना खुद अपने साधन और धन अदि से की जा सकती है। ये जनाब तो सत्ता मिलते किसी मंदिर में पूजा करते करोड़ रूपये की चंदन की लकड़ी दान में दे आये थे सरकारी कोष से। इसको आप भ्र्ष्टाचार भले नहीं कहोगे भगवान से डर कर मगर पद का दुरूपयोग और धर्मानुसार पाप ही होगा। ये अजीब धार्मिकता है जो जानवरों के नाम पर इंसानों की हत्या करवाती है। दैरो हरम में रहने वालो , मयखारों में फूट न डालो। आप पुण्यात्मा हम सब मुजरिम आपके हिसाब से मगर संविधान सब को बराबर मानता है। मंदिर और भगवान के नाम पर दंगे करवाना देश भक्ति नहीं है। व्यक्तिवाद परिवारवाद से खतरनाक है और किसी एक संगठन के लोगों को ही मनोनीत कर बड़े बड़े पदों पर बिठाने का अर्थ भी संविधान और लोकतंत्र के लिए खतरा है। देश को किसी मसीहा की ज़रूरत शासन करने को नहीं है , मसीहा होते हैं जो लोग वो सत्ता और शासन की हवस के भूखे नहीं हुआ करते। जिनको मसीहा लगता है कोई वो भी उनके सत्ता से बाहर होते कोई और मसीहा तलाश करते मिलेंगें।

1 टिप्पणी:

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गुलशेर ख़ाँ शानी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।