जून 07, 2013

खुदा देखता तेरे गुनाह , डरना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

खुदा देखता तेरे गुनाह , डरना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

खुदा देखता  तेरे  गुनाह , डरना
सितमगर सितम की इन्तिहा न  करना ।

कई लोग फिसले , फिसलते गये हैं
वहीं पर खड़े हो , संभलकर उतरना ।

किये दफ़्न तुमने , जिस्म तो हमारे
बहेगा हमेशा प्यार का ये झरना ।

परिंदे यही फरियाद कर रहे हैं
किसी के परों को मत कभी कतरना ।

नहीं दूर अपनी मौत जानते हैं
किया पर नहीं मंजूर रोज़ मरना ।

बिना नीवं देखो बन गई इमारत
किसी दिन पड़ेगा टूटकर बिखरना ।

सुबह शाम "तनहा" देखकर के सूरज
हैं कहते, सिखा दो डूबकर उभरना । 
 

 

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