अक्तूबर 12, 2012

मेरे दुश्मन मुझे जीने की दुआ न दे ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

मेरे दुश्मन मुझे जीने की दुआ न दे ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

मेरे दुश्मन मुझे जीने की दुआ न दे
मौत दे मुझको मगर ऐसी सज़ा न दे ।

उम्र भर चलता रहा हूं शोलों पे मैं
न बुझा इनको ,मगर अब तू हवा न दे ।

जो सरे आम बिके नीलाम हो कभी
सोने चांदी से तुले ऐसी वफ़ा न दे ।

आ न पाऊंगा यूं तो तिरे करीब मैं
मुझको तूं इतनी बुलंदी से सदा न दे ।

दामन अपना तू कांटों से बचा के चल
और फूलों को कोई शिकवा गिला न दे ।

किस तरह तुझ को सुनाऊं दास्ताने ग़म
डरता हूं मैं ये कहीं तुझको रुला न दे ।

ज़िंदगी हमसे रहेगी तब तलक खफा
जब तलक मौत हमें आकर सुला न दे ।  
 

 

2 टिप्‍पणियां:

Sanjaytanha ने कहा…

Bahut khub👌👌

Sanjaytanha ने कहा…

Waahh पहले भी पढी है ये 👌