अगस्त 19, 2012

वक़्त के साथ जो चलते हैं संवर जाते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

वक़्त के साथ जो चलते हैं संवर जाते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

वक़्त के साथ जो चलते हैं संवर जाते हैं
जो पिछड़ जाते हैं वो लोग बिखर जाते हैं।

जिनको मिलता ही नहीं कोई जीने का सबब
मौत से पहले ही अफ़सोस वो मर जाते हैं।

मुश्किलों को कभी आसान नहीं कर सकते
उलझनों से , वो सभी लोग , जो डर जाते हैं।

जो नहीं मिलता कभी जा के किनारों पे हमें
वो उन्हें मिलता है जो बीच भंवर जाते हैं।

हम समझते हैं जिन्हें अपना वो गैरों की तरह
पेश आते हैं तो हम जीते जी मर जाते हैं।

गैर अच्छे जो मुसीबत में हमारी आकर
दोस्तों जैसा कोई काम तो कर जाते हैं।

आएगा कोई हमारा भी मसीहा बन कर
आस में, उम्र तो क्या , युग भी गुज़र जाते हैं।  
 

दोस्तो अब आप मेरी नज़्म / ग़ज़ल मेरे यूट्यूब चैनल पर भी देख सुन सकते हैं। 

लिंक नीचे दिया गया है। अंदाज़-ए -ग़ज़ल। 


 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बढिया मतले...अफसोस मर् जाते हैं👌👌👍👍