अगस्त 01, 2012

जश्न यारो मेरे मरने का मनाया जाये ( वसीयत-नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

     जश्न यारो मेरे मरने का मनाया जाये ( वसीयत-नज़्म ) 

                            डॉ लोक सेतिया

जश्न यारो , मेरे मरने का मनाया जाये
बा-अदब अपनों परायों को बुलाया जाये।

इस ख़ुशी में कि मुझे मर के मिली ग़म से निजात
जाम हर प्यास के मारे को पिलाया जाये।

वक़्त ए रुखसत मुझे दुनिया से शिकायत ही नहीं
कोई शिकवा न कहीं भूल के लाया जाये।

मुझ में ऐसा न था कुछ , मुझको कोई याद करे
मैं भी कोई था , न ये याद दिलाया जाये।

दर्दो ग़म , थोड़े से आंसू , बिछोह तन्हाई
ये खज़ाना है मेरा , सब को दिखाया जाये।

जो भी चाहे , वही ले ले ये विरासत मेरी
इस वसीयत को सरे आम सुनाया जाये।   

1 टिप्पणी:

nazar ने कहा…

शानदार ग़ज़ल । वाह वाह