जश्न यारो मेरे मरने का मनाया जाये ( वसीयत-नज़्म )
डॉ लोक सेतिया
जश्न यारो , मेरे मरने का मनाया जायेबा-अदब अपनों परायों को बुलाया जाये।
इस ख़ुशी में कि मुझे मर के मिली ग़म से निजात
जाम हर प्यास के मारे को पिलाया जाये।
वक़्त ए रुखसत मुझे दुनिया से शिकायत ही नहीं
कोई शिकवा न कहीं भूल के लाया जाये।
मुझ में ऐसा न था कुछ , मुझको कोई याद करे
मैं भी कोई था , न ये याद दिलाया जाये।
दर्दो ग़म , थोड़े से आंसू , बिछोह तन्हाई
ये खज़ाना है मेरा , सब को दिखाया जाये।
जो भी चाहे , वही ले ले ये विरासत मेरी
इस वसीयत को सरे आम सुनाया जाये।
1 टिप्पणी:
शानदार ग़ज़ल । वाह वाह
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